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Friday, November 22, 2024

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हिंदू संगठन ज्ञानवापी पर फैसले से हुए खुश, VHP बोली- पहली बाधा मंदिर की पार कर ली

ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में शृंगार गौरी की पूजा की मांग वाली अर्जी को सुनवाई योग्य माने जाने के वाराणसी कोर्ट के फैसले से हिंदू संगठनों में खुशी का माहौल है। विश्व हिंदू परिषद ने अदालत के फैसले को पहली बाधा पार होने वाला बताया है। वीएचपी ने कहा कि इस फैसले से ज्ञानवापी परिसर पर हिंदू श्रद्धालुओं के दावे की पहली बाधा खत्म हो गई है। वीएचपी लंबे समय से काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में बनी ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में कृष्णजन्मभूमि से सटे ईदगाह पर हिंदुओं के हक की बात कर रही है। वीएचपी का कहना है कि दोनों मंदिरों को तोड़कर ही इनका निर्माण किया गया था। इसलिए इन्हें वापस हिंदुओं को सौंपा जाए। 

वीएचपी के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा, ‘वाराणसी की अदालत ने अब यह फैसला लिया है कि इस मामले में 1991 का प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट लागू नहीं होगा। दूसरे पक्षों के आवेदन को खारिज कर दिया गया है। पहली बाधा इस मामले में पार हो गई है। अब अदालत में इस केस की मेरिट के आधार पर सुनवाई की जाएगी।’ आलोक कुमार इससे पहले भी कहते रहे हैं कि ज्ञानवापी मामले में प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट लागू नहीं होता है। उनका कहना है कि यहां शिवलिंग का मिलना इस बात का प्रमाण है कि दशकों से मंदिर यहां रहा है। बता दें कि 1991 का कानून यह कहता है कि किसी भी धार्मिक स्थल का 15 अगस्त, 1947 यानी देश की आजादी तक जो स्वरूप रहा है, वही माना जाएगा। 

VHP बोली- मथुरा और काशी पर लागू नहीं होता 1991 का कानून

उसके बाद यदि उसके स्वरूप में कोई बदलाव किया जाता है और उसके आधार पर दावेदारी की जाती है तो उसे स्वीकार नहीं किया जाएगा। हिंदू पक्ष का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में हिंदू मंदिर होने के सूबत हैं और यह सदियों से हैं। ऐसे में 1991 का ऐक्ट इस परिसर पर लागू नहीं होता। वीएचपी की ओर से कई बार यह कहा जाता रहा है कि इस ऐक्ट के दायरे में मथुरा और काशी के मामले नहीं आते। आलोक कुमार ने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि अंत में जीत हमारी ही होगी। न्याय और सत्य हमारे साथ हैं।’ उन्होंने कहा कि यह धार्मिक और आध्यात्मिक मामला है। इसलिए इस मामले में किसी निर्णय को जीत या हार के तौर पर नहीं देखना चाहिए। शांति बनाकर रखना जरूरी है।

VHP है आक्रामक, पर संभलकर चल रही है भाजपा

बता दें कि एक तरफ भाजपा के मेंटॉर कहे जाने वाले आरएसएस और वीएचपी इस मामले में खासे ऐक्टिव हैं। वहीं भाजपा चुप्पी ओढ़े हुए है और नेता संभलकर बयान दे रहे हैं। शीर्ष नेता की ओर से तो कोई टिप्पणी ही नहीं की गई है। पार्टी का कहना है कि यह मामला अदालत में है और उसकी ओर से ही फैसला आना चाहिए। यूपी भाजपा के प्रवक्ता चंद्रमोहन ने कहा, ‘हम कोर्ट के फैसले का स्वागत और सम्मान करते हैं। हमने राम जन्मभूमि के मामले में भी यही कहा था कि अदालत के फैसले को मानेंगे। आज अदालत के फैसले से ही राम मंदिर का निर्माण हो रहा है।’

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