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Sunday, April 28, 2024

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हाईकोर्ट फर्जी खबरों के खिलाफ IT नियमों पर फैसला सुना सकता है; ‘अवैध’ बताया शिक्षक की गिरफ्तारी को

केंद्र सरकार ने शुक्रवार को कहा कि वह फर्जी खबरों के खिलाफ संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों के तहत विचार की जाने वाली फैक्ट चेकिंग यूनिट (एफसीयू) को तब तक अधिसूचित नहीं करेगी, जब तक कि बंबई उच्च न्यायालय संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला नहीं सुना देता। 

न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने याचिकाओं पर बहस बंद कर दीं और कहा कि वह एक दिसंबर को फैसला सुनाने की कोशिश करेगी। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि जब तक फैसला नहीं आ जाता, तब तक केंद्र सरकार एफसीयू को अधिसूचित नहीं करेगी।

एफसीयू सोशल मीडिया पर ‘सरकार के कारोबार’ से संबंधित ‘फर्जी, झूठे और भ्रामक तथ्यों’ की पहचान करेगा। संशोधित नियमों के तहत, यदि एफसीयू को कोई फर्जी पोस्ट मिलती है, तो यह सोशल मीडिया मध्यस्थ (जहां इसे पोस्ट/अपलोड किया गया है) को सूचित करेगा।

स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन ने संशोधित नियमों के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर कीं हैं और उन्हें मनमाना और असंवैधानिक करार दिया। इनका दावा है कि इससे नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। 

याचिकाओं में कहा गया है कि सरकार एकमात्र मध्यस्थ बनने की कोशिश कर रही है, और नागरिकों की अभिव्यक्ति की आजादी और अभिव्यक्ति के अधिकार को कम करने की कोशिश करेगी। उन्होंने मांग की कि अदालत को संशोधित नियमों को असंवैधानिक घोषित करना चाहिए और सरकार को निर्देश देना चाहिए कि वह उनके तहत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने से रोके।

उच्च न्यायालय को निर्देश- शिक्षक को दो लाख रुपये का मुआवजा दे सरकार
बंबई उच्च न्यायालय ने एक संगीत शिक्षक को गिरफ्तार करने और उसे अवैध रूप से हिरासत में रखने के लिए पुलिस को फटकार लगाई है। अदालत ने कहा कि पुलिस की कार्रवाई से पुलिस की ज्यादती और असंवेदनशीलता की बू आती है। इसके साथ ही अदालत ने महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह शिक्षक को दो लाख रुपये का मुआवजा प्रदान करे। 

न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की खंडपीठ ने नीलम संपत की ओर से दायर याचिका पर यह आदेश पारित किया। याचिका में आरोप लगाया गया था कि पुलिस ने उनके पति नितिन संपत को अवैध रूप से हिरासत में रखा है और उन्हें गिरफ्तार किया गया है, जबकि उनके खिलाफ आरोप जमानती थे।

पीठ ने कहा, ‘यह एक ऐसा मामला है, जहां अनुच्छेद 21 के तहत नितिन के अधिकार (जमानती अपराधों में जमानत पर रिहा होने का उनका अधिकार) की गारंटी का घोर उल्लंघन हुआ है;  यह उच्चतम न्यायालय के उन फैसलों का स्पष्ट उल्लंघन है जिनमें कहा गया है कि इस तरह के मामलों में गिरफ्तारी तभी की जानी चाहिए जब इसकी बहुत जरूरत हो।’

उन्होंने कहा, ‘मामले में जो तथ्य बताए गए हैं, उससे पुलिस की ज्यादती की बू आती है। इससे उनकी असंवेदनशीलता की बू आती है। यह कानूनी प्रावधानों के ज्ञान की कमी को दिखाता है। पुलिस की इस कार्रवाई से याचिकाकर्ता के पति नितिन को शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक रूप से अनुचित आघात पहुंचा है।

महाराष्ट्र सरकार के आदेश पर उच्च न्यायालय ने लगाई रोक
उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) के उस आदेश पर छह अक्तूबर तक अंतरिम रोक लगा दी, जिसमें शरद पवार नीत राकांपा के विधायक रोहित पवार को उनकी कंपनी बारामती एग्रो लिमिटेड की एक इकाई को बंद करने को कहा गया था।

न्यायमूर्ति नितिन जामदार की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि वह बारामती एग्रो द्वारा बंद करने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर छह अक्तूबर को सुनवाई करेगी और अधिकारियों को तब तक एमपीसीबी के आदेश पर कार्रवाई नहीं करनी चाहिए।

वकील अक्षय शिंदे के जरिए दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि एमपीसीबी का आदेश राजनीतिक प्रभाव और वर्तमान राजनीतिक स्थिति को देखते हुए याचिकाकर्ता पर दबाव डालने के लिए पारित किया गया था। रोहित पवार बारामती एग्रो के सीईओ हैं, जो पशु और पोल्ट्री फीड विनिर्माण, चीनी और इथेनॉल विनिर्माण, बिजली के सह-उत्पादन, कृषि-वस्तुओं, फलों और सब्जियों और डेयरी उत्पादों के व्यापार में है।

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