सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में उत्पन्न होने वाले 3800 टन ठोस कचरे के निस्तारण में विफलता पर चिंता जताते हुए नगर निगम समेत अन्य प्राधिकरणों को कड़ी फटकार लगाई। ठोस कचरे के पहाड़ की स्थिति को भयावह बताते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि हम चिंतित हैं कि पूरी दुनिया क्या कहेगी? अभी ये हालात हैं तो 2025 में क्या होगा?
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जवल भुइयां की पीठ ने कहा कि इस मुद्दे को राजनीति से परे होना चाहिए। इतनी बड़ी मात्रा में अनुपचारित ठोस कचरे का उत्पादन सीधे तौर पर संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के नागरिकों के मौलिक अधिकार को प्रभावित करता है। पीठ ने सवाल किया कि आखिर इस ठोस कचरे से निपटने के लिए सुविधा कब होगी? कृपया हमें तारीख बताएं? इस पर दिल्ली नगर निगम की वकील मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि हम तीन साल के अंदर क्षमता बढ़ाएंगे। पीठ ने कहा कि यानी 2027 तक हर दिन 3800 टन कचरा पैदा होता रहेगा। यह शहर के पर्यावरण के लिए बहुत बड़ा खतरा है। जस्टिस ओका ने कहा कि यह राजधानी है। हमें बताएं कि अब आप इस स्थिति से निपटने के लिए क्या करेंगे। मामले की अगली सुनवाई 26 अप्रैल को होगी।
ठोस प्रस्ताव नहीं तो सख्त आदेश देंगे
पीठ ने आदेश में कहा कि यदि प्राधिकरण ठोस प्रस्ताव लाने में विफल रहते हैं तो हमें सख्त आदेश पारित करने पर विचार करना होगा। हम निगम के सर्वोच्च अधिकारी को तलब करेंगे। पीठ ने यह भी कहा कि प्रथमदृष्टया धारणा यह है कि किसी भी प्राधिकरण ने हर दिन उत्पन्न होने वाले ठोस कचरे से निपटने के लिए पर्याप्त क्षमता नहीं होने के गंभीर परिणामों पर विचार करने की जहमत नहीं उठाई।
सुप्रीम कोर्ट ने निगम समेत सभी संबंधित प्राधिकरण को सुनिश्चित करने के लिए तत्काल उपाय करने का निर्देश दिया कि जब तक ठोस कचरे के प्रसंस्करण के लिए उचित सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो जातीं, तब तक दिल्ली और आसपास अनुपचारित (अनट्रीटेड) ठोस कचरे की मौजूदा मात्रा में वृद्धि न हो।
कोर्ट ने निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध सहित विभिन्न उपायों पर विचार करने के लिए कहा है। पीठ ने आवास मामलों के मंत्रालय के सचिव को समाधान खोजने के लिए इन क्षेत्रों को नियंत्रित करने वाले अथॉरिटी की बैठक बुलाने के निर्देश भी दिए।