बिना किसी जांच और नोटिस दिए पत्रकार को गिरफ्तार करने पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने नाराजगी जाहिर की। कोर्ट ने गिरफ्तारी को अवैध करार देते हुए कहा कि केवल अपराध के आरोप पर बिना वास्तविकता को जांचे कोई गिरफ्तारी नहीं की जानी चाहिए। न्यायाधीश रेवती मोहिते डेरे और न्यायाधीश श्याम चांडक की खंडपीठ ने पत्रकार अभिजीत पडले को तीन दिन तक जेल में रखने पर महाराष्ट्र सरकार को 25 हजार मुआवजा देने के निर्देश दिए। साथ ही पत्रकार को गिरफ्तार करने वाले वकोला पुलिस स्टेशन के पुलिसकर्मियों की जांच के आदेश दिए।
दरअसल वकोला पुलिस ने 15 जनवरी 2022 को मोहम्मद सिद्दीकी की शिकायत पर पत्रकार अभिजीत पडले के खिलाफ जबरन वसूली और धमकी देने का मुकदमा दर्ज किया। पुलिस ने मुकदमा दर्ज करते ही पडले को गिरफ्तार कर लिया और अगले दिन मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया। मामले में मजिस्ट्रेट ने पडले को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। इस दौरान पडले ने जमानत याचिका दायर की। जिस पर 18 जनवरी को ही सुनवाई हुई और उन्हें जमानत दे दी गई। 15 जनवरी से लेकर 18 जनवरी तक वह न्यायिक हिरासत में रहा।
मामले में पडले ने उच्च न्यायालय में गिरफ्तारी और हिरासत को अवैध घोषित करने की मांग को लेकर याचिका दायर की। उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार करने से पहले धारा 41ए के तहत नोटिस जारी नहीं किया था। याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि पडले को धारा 41ए के तहत नोटिस दिया जाना चाहिए था। पुलिस ने नोटिस तैयार किया था, लेकिन उसे तामील नहीं किया गया।
अदालत ने कहा कि पडले की गिरफ्तारी के दौरान सीआरपीसी के आदेशों का घोर उल्लंघन किया गया। कोर्ट ने कहा कह किसी व्यक्ति के खिलाफ अपराध करने के आरोप मात्र से गिरफ्तारी नहीं की जा सकती है। पुलिस अधिकारी आरोप की वास्तविकता के बारे में जांच के बाद गिरफ्तारी करनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि पुलिस की कार्रवाई सही, उचित और निष्पक्ष होनी चाहिए थी, लेकिन मामले में तीनों चेतावनियों को नजरअंदाज किया गया।
कोर्ट ने मुंबई पुलिस आयुक्त को वकोला पुलिस स्टेशन के पुलिसकर्मियों के खिलाफ डिप्टी पुलिस कमिश्नर रैंक के अधिकारी से जांच कराने के निर्देश दिए। साथ ही महाराष्ट्र सरकार को दस सप्ताह के भीतर पडले को 25,000 रुपये का मुआवजा देने का भी निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि मुआवजे की रकम पुलिस अधिकारी-कर्मचारियों से वसूल की जाए, जो पडले की गिरफ्तारी के लिए जिम्मेदार निकलें।