बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक याचिका खारिज करते हुए कहा कि अगर एक महिला अच्छी पत्नी नहीं बन पाई इसका मतलब यह नहीं है कि वह एक अच्छी मां नहीं बन सकती है। अदालत ने पूर्व विधायक के बेटे की याचिका को खारिज करते हुए कहा नौ साल की बच्ची की कस्टडी उसकी मां को सौंपते हुए कहा कि व्याभिचार तालाक का आधार हो सकते हैं लेकिन बच्चे की कस्टडी देने का नहीं। बता दें, याचिका में पारिवारिक अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उनकी बेटी की कस्टडी उसकी पत्नी को दी गई थी।
दरअसल, याचिका दायर करने वाले युवक की शादी 2010 में हुई थी। 2015 में उनकी बेटी का जन्म हुआ। 2019 में महिला ने दावा किया कि उसे उनके घर से निकाल दिया गया है। हालांकि, याचिकाकर्ता का कहना है कि उसकी पत्नी अपनी इच्छा से गई है। याचिकाकर्ता की वकील इंदिरा जयसिंह ने अदालत से कहा कि महिला के कई अफेयर हैं, इसलिए बच्चे की कस्टडी उसे सौंपना सही नहीं होगा। याचिका में दावा किया गया कि उनकी बेटी उसके और उसके माता-पिता के साथ रहने से खुश रहेगी। वह अपनी मां से खुश नहीं है। लड़की के स्कूल के अधिकारियों ने भी याचिकाकर्ता की मां को ईमेल लिखकर महिला के व्यवहार पर चिंता जताई थी।
अदालत ने की यह टिप्पणी
न्यायमूर्ति राजेश पाटिल की एकल पीठ ने मामले में सुनवाई करते हुए आपत्ति जताई कि जब बच्ची के मां-बाप खुद शिक्षित हैं तो स्कूल ने दादी से संपर्क क्यों किया। अदालत ने कहा कि स्कूल अधिकारियों को बच्ची से संबंधित मुद्दों के बारे में दादी को बताने का कोई कारण नहीं बनता। लड़की केवल नौ वर्ष की है, ऐसे में अदालत को बच्चे के कल्याण को सर्वोपरि मानना चाहिए। उन्होंने कहा कि लड़की की देखभाल उसकी नानी ने की है और मां के संरक्षण में उसका शैक्षणिक रिकॉर्ड भी काफी अच्छा है। बच्ची की हिरासत को पत्नी से पति को सौंपने का कोई कारण नहीं है।