पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार को बड़ी राहत देते हुए जातीय जनगणना पर लगी रोक हटा दी है. कोर्ट ने बिहार में सरकार द्वारा कराए गए जाति सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है. इस फैसले के बाद बिहार में एक बार फिर से जातीय जनगणना शुरू की जाएगी. इससे पहले हाईकोर्ट ने ही जातीय जनगणना पर रोक लगा दी थी.
बिहार सरकार ने जातीय जनगणना कराने का फैसला लिया है. इसके खिलाफ पटना हाई कोर्ट में छह याचिकाएं दायर की गईं. इस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 4 मई को अस्थायी रोक लगा दी थी. इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने मामले को वापस पटना हाईकोर्ट भेज दिया. इसके बाद 5 दिनों तक हाई कोर्ट में इस पर सुनवाई चली. 7 जुलाई को कोर्ट ने इस पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. पटना हाईकोर्ट ने आज अपना फैसला सुनाते हुए जातीय जनगणना पर लगी रोक हटा दी है.
नीतीश सरकार ने 18 फरवरी 2019 और फिर 27 फरवरी 2020 को बिहार विधानसभा और विधान परिषद में जातीय जनगणना का प्रस्ताव पारित किया था. केंद्र सरकार ने इसका विरोध किया था. बिहार में जाति जनगणना जनवरी 2023 में शुरू हुई। इसे दो चरणों में किया जाना है।
जनगणना के बारे में बिहार सरकार का कहना है कि 1951 से एससी और एसटी जातियों का डेटा प्रकाशित होता है, लेकिन ओबीसी और अन्य जातियों का डेटा उपलब्ध नहीं है. जिसके कारण ओबीसी की सटीक जनसंख्या का अनुमान लगाना मुश्किल है। 1990 में केंद्र की तत्कालीन वीपी सिंह सरकार ने दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफ़ारिश लागू की. 1931 की जनगणना के आधार पर, अनुमान लगाया गया था कि ओबीसी देश की आबादी का 52% है।