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Friday, April 26, 2024

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मुख्यमंत्री को अधिकार नहीं मंत्री के फैसले को बदलने का: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने चंद्रपुर जिला सेंट्रल बैंक भर्ती मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि यदि मंत्री ने अपने आवंटित मंत्रालय से संबंधी कोई फैसला लिया है तो उसे मुख्यमंत्री को बदलने या उस फैसले में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है। इस फैसले के साथ बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने 22 नवंबर 2022 को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे द्वारा लिये गये चंद्रपुर डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल बैंक की भर्ती के संबंध में लिये गये लगाई गई रोक को हटाने का आदेश दिया है।

मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के जस्टिस विनय जोशी और जस्टिस वाल्मीकि मेंगेस की बेंच ने कहा कि चंद्रपुर डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल बैंक की भर्ती के संबंध में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अपनी शक्तियों को लेकर किये गये फैसले मंत्री के फैसले पर अतिक्रमण हैं, लिहाजा उनके द्वारा दिये गये सारे आदेश निरस्त किये जाते हैं।

दरअसल कोर्ट में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे द्वारा लिये गये विवेकाधीन शक्तियों के खिलाफ याचिकाकर्ता यानी चंद्रपुर डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल बैंक के मौजूदा निदेशक मंडल ने एक याचिका दायर की थी । जिसमें बताया गया था कि सहकारिता मंत्री अतुल सावे ने मुख्यमंत्री द्वारा लगाये गये 22 नवंबर 2022 की रोक को रद्द करते हुए भर्ती को हरी झंडी दे दी थी लेकिन जब बैंक की भर्ती प्रक्रिया शुरू होने वाली थी, तभी 29 नवंबर 2022 को मुख्यमंत्री एकनाथ ने अपने विवेकाधीन शक्तियों का उपयोग करते हुए एक आदेश जारी किया और भर्ती पर दोबारा रोक लगा दी।

जिसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में अपील की। मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि मंत्री द्वारा लिये गये विभागीय फैसलों में मुख्यमंत्री को दखल देने या उसे बदलने का कोई अधिकार नहीं है, जब तक की संबंधित विभाग में मंत्री की नियुक्ति है। चूंकि सहकारिता मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार मुख्यमंत्री के पास नहीं था। इस कारण से उनके द्वारा संबंधित मंत्रालय में दिये गये आदेश मंत्री के अधिकारों में अतिक्रमण हैं। इस कारण मुख्यमंत्री द्वारा भर्ती पर लगाई गई रोक हटाई जाती है।

कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे सहकारिता विभाग के प्रमुख नहीं थे और न ही उन्हें संबंधित विभाग के मंत्री से विशेषाधिकार प्राप्त थे। इस कारण ऐसा कोई नियम लागू नहीं होता है, जिसमें मंत्री को मुख्यमंत्री से हीन माना जाता है और साथ ही मुख्यमंत्री को संबंधित विभाग के फैसले लेते समय यह स्पष्ट करना चाहिए था कि वो शासन के किस प्रावधान के तहत संबंधित निर्णय ले रहे थे।

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