लखनऊ – किसान आंदोलन के सामने मजबूर नज़र आ रही हैं मोदी की भाजपा।2014 के लोकसभा चुनाव में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे कर चुनाव में गईं भाजपा ने अनेकों अनेक सपनों का बाज़ार लगाकर चुनाव तो जीता और उसके बाद 2017 का यूपी चुनाव भी प्रचंड बहुमत से जीता फिर 2019 के लोकसभा चुनावों में भी विपक्ष को जगह नहीं मिलने दी,साथ ही किसी आंदोलन को भी उभरने नहीं दिया यह बात अलग है कि जो सपने दिखाकर सत्ता हासिल की थी वह पूरे किए या नहीं किए इस पर कोई बात नहीं की जाती कुछ सपनों को जुमले कह कर टाल जाते हैं तो कुछ पर खामोशी अख़्तियार कर ली जाती हैं।
हिन्दू मुसलमान कर सत्ता का आनंद लेते रहे जहाँ घिरते नज़र आते है वहाँ कांग्रेस की नेहरू की बात कर मामले को घूमा दिया जाता है।इस दौरान दो आंदोलन बड़े पैमाने पर हुए CAA , NPR व संभावित NRC का देशभर में बहुत विरोध हुआ लेकिन मोदी सरकार ने इस आंदोलन को हिन्दू मुसलमान कर हल्का करने की भरपूर कोशिश की थी लेकिन वह आंदोलन कोरोना वायरस की वजह से वापिस हुआ था ख़त्म नहीं हुआ था और अब अब अपने उद्योगपति मित्रों को लाभ पहुँचाने के लिए बनाए गए तीन नए कृषि क़ानून बनाए गए हैं जिसका देशभर के किसान पिछले चार महीने से विरोध कर रहें हैं लेकिन मोदी सरकार न सीएए पर वापिस हुईं थीं और न कृषि क़ानूनों पर वापिस होने के संकेत दे रही हैं।
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इन दोनों बड़े आंदोलनों में सीएए , एनपीआर व संभावित एनआरसी के विरूद्ध आंदोलन को तो मोदी सरकार हिन्दू मुसलमान का इंजेक्शन देकर कंट्रोल करने में कामयाब रही थी लेकिन किसान आंदोलन को कमज़ोर करने में नाकाम रही हैं।हालाँकि केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार सहित आरएसएस के समर्थित संगठनों ने इस आंदोलन को भी बदनाम करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए खालिस्तानी , नक्सली ,आतंकवादी पाकिस्तानी व चीनी परस्त तक कहा गया फिर मुट्ठी भर किसानों का आंदोलन बताया गया पंजाब व हरियाणा का आंदोलन कहा गया लेकिन किसान आंदोलन पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा और यह आंदोलन धीरे-धीरे पूरे देश में फैलता गया अब सवाल उठता है कि क्या मोदी की भाजपा के लिए यह आंदोलन गले की फाँस बन गया है और न उगलते बन रहा है और न निगलते बन रहा है।
मोदी की भाजपा के नेता इससे निपटने के लिए जो भी रूख अख़्तियार कर रहे हैं वहीं उल्टा पड़ रहा है।मोदी की भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह मानी जा रही हैं कि इसी वर्ष के आख़िर तक देश का सबसे बड़ा राज्य यूपी और उत्तराखंड चुनाव की ओर जा रहा है जहाँ मोदी की भाजपा की सरकारें हैं उसमें किसान आंदोलन कितना फ़र्क़ डालता है यह राजनीतिक पंडित आकंलन कर रहे हैं उनका दावा है कि इन दोनों राज्यों में किसान आंदोलन बड़े पैमाने पर मोदी की भाजपा को नुक़सान होने का अनुमान लगाया जा रहा है लेकिन मोदी की भाजपा ऐसा प्रदर्शित कर रही हैं जैसे वह इस आंदोलन से डर नहीं रही हैं अगर वह यह सिर्फ़ दिखावा कर रही हैं कि वह डर नहीं रही हैं और वह इससे हो रहे नुक़सान की भरपाई के लिए रणनीति तैयार कर ज़मीन पर मुक़ाबला करेंगी तो ठीक है और अगर वह यह वास्तव में ही इस आंदोलन को हल्के में ले रही है तो यह उसकी सबसे बड़ी भूल होगी।
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हमने कई ऐसे लोगों से बात की है जो मोदी की भाजपा को क़रीब से नज़र रखते हैं उनका कहना है कि इस आंदोलन को मज़बूत करने में और दिल्ली की सीमाओं तक पहुँचाने में हरियाणा की भाजपा सरकार ज़िम्मेदार है हरियाणा सरकार ने इस आंदोलन को हल्के में लिया है दूसरी ग़लती यूपी की योगी सरकार के पुलिस अफ़सरों व प्रशासनिक अधिकारियों की रही जब मोदी सरकार के अधिकारी किसानों को लालक़िले पर ले जाने में कामयाब हो गए थे और उनसे कुछ ग़लतियाँ करा दी थी उसके बाद लगने लगा था कि किसान आंदोलन बस कुछ ही देर में समाप्त हो जाएगा क्योंकि लालक़िले की घटना से किसान नेता बैकफुट पर थे उसी दौरान यूपी पुलिस ने आंदोलन स्थल पर इतनी फ़ोर्स लगा दी गई थी जैसे ऊपर से आदेश का इंतज़ार है जिसके बाद बलपूर्वक किसानों हटा दिया जाएगा बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि हल्का फुलका शुरू भी कर दिया था।
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इसी दौरान मोदी की भाजपा के एक विधायक ने किसानों को पीटना भी शुरू कर दिया था जिसका पता किसान नेता राकेश टिकैत को लगा उसके बाद उनका दर्द फूट पड़ा और उनकी आँखों से बहे आँसुओं ने मोदी सरकार को बैकफ़ुट पर ला दिया और आंदोलन फ़्रंट फुट पर आ गया रात में ही किसानों की भीड़ ने यह साबित कर दिया कि कृषि क़ानूनों के विरूद्ध चल रहा आंदोलन मुट्ठी भर किसानों का आंदोलन नहीं वह जन आंदोलन हैं।उसी का नतीजा है कि यह आंदोलन मोदी की भाजपा के लिए मुसीबत बन गया है इससे निपटने के लिए मोदी सरकार को अपने कदम पीछे खींचने ही पड़ेंगे नहीं तो यह आंदोलन मोदी की भाजपा के लिए उसके ताबूत में आख़िरी कील साबित होने जा रहा है।