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Tuesday, May 7, 2024

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जज ने खुद को उमर खालिद की याचिका पर सुनवाई से किया अलग, जमानत की मांग की है UAPA मामले में

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा ने बुधवार को फरवरी 2020 में दिल्ली में हुए दंगों के पीछे की कथित साजिश से संबंधित यूएपीए मामले में पूर्व जेएनयू छात्र उमर खालिद की जमानत की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। दिल्ली उच्च न्यायालय के पिछले साल 18 अक्टूबर को मामले में खालिद की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई है।

न्यायमूर्ति बोपन्ना ने शुरुआत में न्यायमूर्ति मिश्रा के इनकार का कोई कारण बताए बिना कहा, यह किसी अन्य पीठ के समक्ष आएगा। मेरे सहयोगी न्यायमूर्ति मिश्रा को इस मामले को उठाने में कुछ कठिनाई है। दिल्ली पुलिस की ओर से पेश वकील रजत नायर ने पीठ को बताया कि उन्होंने एक जवाबी हलफनामा दायर किया है लेकिन शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री ने इस पर आपत्ति जताई है।

उन्होंने कहा, बयानों के कुछ हिस्से हैं जो हमने निकाले हैं, वह हिस्सा कौमी भाषा में है। उन्होंने आगे कहा, वह बयान खुद कौमी भाषा में है। नायर ने कहा कि वह मामले में दायर आरोपपत्र का प्रासंगिक हिस्सा भी दाखिल करना चाहते हैं। पीठ ने मामले की सुनवाई 17 अगस्त को तय करते हुए कहा कि जवाबी हलफनामे को रिकॉर्ड पर लिया जाए।

पीठ ने कहा, मामले को पीठ के इस संयोजन में नहीं उठाया जा सकता। इसलिए, 17 अगस्त को सूचीबद्ध करें। 12 जुलाई को दिल्ली पुलिस ने खालिद की याचिका पर जवाब देने के लिए समय मांगा था। खालिद की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने तब कहा था, जमानत मामले में, कौन सा जवाब दाखिल किया जाना है। आदमी दो साल और 10 महीने से जेल में है।

शीर्ष अदालत ने 18 मई को मामले में जमानत देने से इनकार करने के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली खालिद की याचिका पर दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा था। उच्च न्यायालय ने पिछले साल अक्टूबर में उनकी जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि वह अन्य सह-अभियुक्तों के साथ लगातार संपर्क में थे और उनके खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया में सही हैं। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि आरोपियों की हरकतें प्रथम दृष्टया आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए के तहत “आतंकवादी कृत्य” के रूप में योग्य हैं।

खालिद, शरजील इमाम और कई अन्य पर कथित तौर पर फरवरी 2020 के दंगों का “मास्टरमाइंड” होने के लिए भारतीय दंड संहिता के प्रावधान के तहत आतंकवाद विरोधी कानून गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और अन्य के तहत मामला दर्ज किया गया है। इस दंगे में 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हो गए थे, जब सीएए और एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क गई थी।

सितंबर 2020 में दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए खालिद ने इस आधार पर जमानत मांगी थी कि हिंसा में उसकी न तो कोई आपराधिक भूमिका थी और न ही मामले में किसी अन्य आरोपी के साथ कोई षड्यंत्रकारी संबंध था।

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