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Monday, May 6, 2024

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ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता की याचिका पर विचार करने से अदालत ने किया इनकार, मणिपुर हिंसा से जुड़ा है मामला

सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता की एक याचिका पर विचार करने से मना कर दिया है, जो मणिपुर हिंसा से जुड़ी हुई थी। याचिका में कार्यकर्ता ने मांग की थी कि अदालत हिंसा के विरोध में आमरण अनशन करने पर उसके खिलाफ दर्ज हुई एफआईआर को रद्द करने का निर्देश दे। 

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ- न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने कार्यकर्ता मालेम थोंगम से कहा कि आप चाहें तो मणिपुर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकती हैं, आप इसके लिए स्वतंत्र हैं। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए मणिपुर उच्च न्यायालय में जाने के लिए स्वतंत्र हैं। इसलिए, संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत हम इस याचिका पर विचार करने से इनकार करते हैं। 

अब जानिए, कौन है कार्यकर्ता मालेम थोंगम
गौरतलब है कि थोंगम ने 22 फरवरी को दिल्ली विश्वविद्यालय में अपनी भूख हड़ताल शुरू की थी। वे 27 फरवरी को दिल्ली से मणिपुर गईं थीं, यहां उन्होंने इंफाल के कांगला पश्चिमी गेट पर अपनी भूख हड़ताल जारी रखी। आत्महत्या के प्रयास और समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोप में पुलिस ने दो मार्च को उन्हें गिरफ्तार किया था। हालांकि, तीन दिन बाद ही पांच मार्च को उन्हें रिहा कर दिया गया। रिहाई के एक दिन बाद ही सार्वजनिक रूप से विरोध करने के आरोप में उन्हें दोबारा पकड़ लिया गया। 

मणिपुर में हुई हिंसा का यह है कारण
राज्य में मैतेई समुदाय के लोगों की संख्या करीब 60 प्रतिशत है। ये समुदाय इंफाल घाटी और उसके आसपास के इलाकों में बसा हुआ है। समुदाय का कहना रहा है कि राज्य में म्यांमार और बांग्लादेश के अवैध घुसपैठियों की वजह से उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। 

वहीं, मौजूदा कानून के तहत उन्हें राज्य के पहाड़ी इलाकों में बसने की इजाजत नहीं है। यही वजह है कि मैतेई समुदाय ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर उन्हें जनजातीय वर्ग में शामिल करने की गुहार लगाई थी। अदालत में याचिकाकर्ता ने कहा कि 1949 में मणिपुर की रियासत के भारत संघ में विलय से पहले मैतेई समुदाय को एक जनजाति के रूप में मान्यता थी। इसी याचिका पर बीती 19 अप्रैल को हाईकोर्ट ने अपना फैसले सुनाया। इसमें कहा गया कि सरकार को मैतेई समुदाय को जनजातीय वर्ग में शामिल करने पर विचार करना चाहिए। साथ ही हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को इसके लिए चार हफ्ते का समय दिया। अब इसी फैसले के विरोध में मणिपुर में हिंसा हो रही है।

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