बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक 62 वर्षीय युवक को विदेशी मुद्रा अनाधिकृत रूप से रखने और लेन-देन में शामिल होने के मामले में 30 वर्ष बाद 2023 में केंद्र द्वारा पारित हिरासत संबंधी आदेश को रद्द कर दिया है।
बता दें कि यह आदेश 1993 में जारी हुआ था, लेकिन हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि प्राधिकरण 30 वर्षों के बाद आदेश के निष्पादन को उचित ठहराने में विफल रहा है।
अब्दुल रशीद नाम के व्यक्ति को 28 फरवरी, 2023 को विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम (सीओएफईपीओएसए) के प्रावधानों के तहत एक साल के लिए हिरासत में लिया गया था। युवक ने 1993 और 2023 के आदेशों को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया।
पीठ ने रिहा करने का दिया आदेश
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की खंडपीठ ने बुधवार को दोनों आदेशों को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि हिरासत में लेने वाला प्राधिकारी 1993 में पारित हिरासत आदेश के निष्पादन को उचित ठहराने में विफल रहा। पीठ ने निर्देश दिया कि रशीद को तुरंत रिहा किया जाए ।
हालांकि, एचसी ने अपने आदेश पर दो सप्ताह के लिए रोक लगा दी थी, क्योंक केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में आदेश के खिलाफ अपील करने के लिए इस पर स्थगन की मांग की गई थी।
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि मुंबई में उपलब्ध पते पर जाने के अलावा याचिकाकर्ता के ठिकाने का पता लगाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया। अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में तीस साल की अकारण और अत्यधिक देरी याचिकाकर्ता की निवारक हिरासत को उचित नहीं ठहराती है।
नहीं दिया संतोषजनक स्पष्टीकरण
एचसी ने कहा कि हिरासत में लेने वाला प्राधिकारी वर्ष 1993 में पारित हिरासत के आदेश को तीस साल की अवधि तक निष्पादित नहीं करने के लिए कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं देता है।
रशीद ने अपनी याचिका में सीओएफईपीओएसए के प्रावधानों के तहत केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा पारित 17 मई, 1993 के हिरासत आदेश को चुनौती दी थी। उन्होंने मंत्रालय द्वारा पारित 24 मई, 2023 के आदेश को भी चुनौती दी, जिसमें 1993 के आदेश की पुष्टि की गई।