समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तारीफ हो रही है। ताजा घटनाक्रम में पूर्व न्यायाधीशों के समूह ने शीर्ष अदालत के फैसले की सराहना की है। शनिवार को पूर्व न्यायाधीशों ने एक बयान में दावा किया कि इस फैसले को एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय और उसके एक छोटे वर्ग को छोड़कर समाज से “जबरदस्त सराहना” मिली है।
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कानूनी मान्यता देने से इनकार करने वाले उच्चतम न्यायालय के फैसले की सराहना करते हुए जजों ने कहा कि यह वैधानिक प्रावधानों, संस्कृति और नैतिकता की व्याख्या का मिश्रण है। उन्होंने फैसले के विभिन्न बिंदुओं का हवाला देते हुए कहा कि यह फैसला भारतीय संस्कृति, लोकाचार और विरासत के संदर्भ में प्रासंगिक है। रिपोर्ट के अनुसार, प्रमोद कोहली, एसएम सोनी, एएन ढींगरा और आरसी चव्हाण सहित उच्च न्यायालय के 22 पूर्व न्यायाधीशों ने बयान दिया।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि कानूनी मान्यता प्राप्त विवाह को छोड़कर विवाह का “कोई अयोग्य अधिकार” (no unqualified right) नहीं है।
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शीर्ष अदालत के फैसले पर पूर्व न्यायाधीशों ने कहा कि शीर्ष अदालत ने स्पष्ट रूप से फैसला सुनाया है। ऐसे विवाहों को मान्यता देने के लिए प्रावधान करना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है और यह संसद के अधिकार क्षेत्र में है।
संयुक्त बयान में पूर्व न्यायाधीशों ने कहा, माननीय न्यायालय ने संविधान में निहित शक्ति के पृथक्करण के सुस्थापित सिद्धांत की पुष्टि करते हुए कहा है कि न्यायालय का अधिकार क्षेत्र संवैधानिक और वैधानिक प्रावधानों की व्याख्या करना है, न कि विधायी क्षेत्र में उद्यम करना।
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पूर्व जजों ने कहा, संविधान के अनुच्छेद 19, 21 और 25 के तहत मिले समानता, व्यक्तिगत गरिमा, यौन अभिविन्यास और गोपनीयता के अधिकार के बावजूद, समलैंगिक शादी के मुद्दे पर पांच सदस्यीय पीठ में अल्पसंख्यक दृष्टिकोण को बहुमत नहीं मिला। बहुसंख्यक दृष्टिकोण की एक महत्वपूर्ण विशेषता विवाह को एक सामाजिक संस्था के रूप में मान्यता देना है जो देश की अवधारणा से पहले से ही अनादि काल से अस्तित्व में है।