बंबई उच्च न्यायालय ने सोमवार को सरकार के खिलाफ सोशल मीडिया पर फर्जी और झूठी सामग्री की पहचान के लिए फैक्ट चेकिंग यूनिट (एफसीयू) स्थापित करने पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा है कि इससे कोई गंभीर और अपूरणीय क्षति नहीं होगी। सरकार ने हाल ही में सूचना और प्रौद्योगिकी नियमों (IT Rules) में संशोधन करते हुए इसकी स्थापना की थी।
न्यायमूर्ति एएस चंदुरकर की एकल पीठ ने कहा कि सरकार को अपने पहले के बयान को जारी रखने का निर्देश देने के लिए कोई मामला नहीं बनता है। अदालत ने कहा कि वह आईटी नियमों के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई लंबित रहने तक एफसीयू को अधिसूचित नहीं करेगी।
यह आदेश स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा और अन्य की ओर से दायर याचिकाओं पर पारित किया गया। जिसमें आईटी नियमों के खिलाफ उनकी याचिकाओं के अंतिम निपटारे तक एफसीयू की अधिसूचना पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
अदालत ने कहा कि सरकार का पक्ष तर्कसंगत है क्योंकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्पष्ट रूप से कहा है कि राजनीतिक राय, व्यंग्य और कॉमेडी ऐसे पहलू हैं जिनपर केंद्र सरकार कदम से कोई फर्क नहीं पड़ता है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि एफसीयू को अधिसूचित करने से दिक्कत नहीं होगी क्योंकि अधिसूचना के बाद की गई कोई भी कार्रवाई आईटी नियमों की वैधता पर इस अदालत के अंतिम आदेशों के अधीन होगी।
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को आशंका है कि एफसीयू को अधिसूचित किए जाने पर राजनीतिक प्रवचन या टिप्पणियों, राजनीतिक व्यंग्य के रूप में सूचनाओं के आदान-प्रदान को निशाना बनाया जा सकता है। हालांकि, सॉलिसिटर जनरल ने कहा है कि एफसीयू का उद्देश्य राजनीतिक विचारों, व्यंग्य, या राजनीतिक टिप्पणियों को रोकने या नियंत्रित करने का प्रयास करना नहीं है। न्यायमूर्ति चंदुरकर ने कहा कि फिलहाल मेरे विचार से गैर-आवेदक (केंद्र) द्वारा अपनाया गया रुख आवेदकों की ओर से व्यक्त की गई आशंका को दूर करता है।