दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में घोषणा की कि शादी एक वकील के चैंबर में भी साधारण समारोहों जैसे अंगूठियों का आदान-प्रदान या एक-दूसरे को माला पहनाकर की जा सकती है। मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को यह निर्णय प्रभावी रूप से पलट देता है, जिसमें विवाह को वैध बनाने के लिए सार्वजनिक घोषणा और पुजारी की उपस्थिति को अनिवार्य किया गया था।
ये फैसला एक नाबालिग लड़की की गुप्त शादी में मदद करने वाले अधिवक्ताओं के खिलाफ शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही को चुनौती देने वाली अपील के पक्ष में न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने साफ स्पष्ट किया कि अदालत के अधिकारियों के अलावा मित्र, रिश्तेदार या सामाजिक कार्यकर्ता जैसी क्षमता वाले व्यक्ति, वकील, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 (ए) के तहत विवाह संपन्न कराने के लिए अधिकृत हैं।
शीर्ष अदालत द्वारा महत्वपूर्ण बिंदु पर जोर दिया गया कि हिंदू विवाह अधिनियम (तमिलनाडु राज्य संशोधन अधिनियम) की धारा 7-ए में पुजारी की उपस्थिति की आवश्यकता का अभाव था। अदालत ने एक वैध समारोह के लिए रिश्तेदारों, दोस्तों या अन्य व्यक्तियों की उपस्थिति को पर्याप्त माना।