महाराष्ट्र के मंत्री संदीपन भूमरे और अतुल सावे ने शनिवार को मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे से मुलाकात की। उन्होंने शिंदे समिति के दायरे का विस्तार करने वाले दस्तावेज की एक प्रति समुदाय के सदस्यों को सौंपी। यह समिति कुनबी प्रमाण पत्र देने की व्यवहार्यता का अध्ययन करने के लिए गठित की गई है।
जरांगे की मांगों में एक यह है कि मराठों को कुनबी प्रमाण पत्र दिया जाए ताकि उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी के तहत आरक्षण मिल सके। एकनाथ शिंदे सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश संदीप सांडे की अध्यक्षता में समिति गठित की थी,ताकि इस मांग का अध्ययन किया जा सके और पता किया जा सके कि इसे कैसे लागू किया जा सकता है।
जरांगे से मुलाकात के बाद भूमरे ने संवाददाताओं से कहा, शिंदे समिति का दायरा मराठवाड़ा से बढ़ाकर पूरे महाराष्ट्र में कर दिया गया है। भूमरे ने संवाददाताओं के इस सवाल को भी खारिज किया कि मराठा आरक्षण लागू करने के लिए जरांग द्वारा राज्य सरकार को दी गई समयसीमा 24 दिसंबर है या दो जनवरी। उन्होंने कहा, ‘यह सिर्फ कुछ दिनों की बात है और इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता।’ उन्होंने कहा, ‘यह सिर्फ कुछ दिनों की बात है और इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। हो सकता है कि उससे पहले (आरक्षण) मुद्दा हल हो जाए।’
वहीं, इस मुद्दे पर जरांगे ने कहा, यह अच्छा है कि राज्यभर के मराठों को कुनबी प्रमाण पत्र मिलेगा। हमारी सिलसिलेवार भूख हड़ताल जारी है और हम तब तक नहीं रुकेंगे जब तक हमें आरक्षण नहीं मिल जाता। इस बीच, पूर्व राज्यसभा सदस्य संभाजी छत्रपति ने भी दिन में जरांगे से मुलाकात की और कहा कि उनका लक्ष्य उन्हें ताकत देना है। छत्रपति ने यह भी कहा कि सरकार मांगों को पूरा करने पर काम कर रही है और उसे समय दिया जाना चाहिए।
एमआईडीसी का अधिकारी एक करोड़ रुपये की घूस लेते गिरफ्तार
महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम (एमआईडीसी) के एक अधिकारी को अहमदनगर में एक ठेकेदार का बकाया भुगतान जारी करने के एवज में कथित तौर पर एक करोड़ रुपये की रिश्वत मांगने और स्वीकार करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी दी।
आरोपी अमित किशोर गायकवाड़ (32), सहायक अभियंता, एमआईडीसी (अहमदनगर) ने अहमदनगर एमआईडीसी में किए गए पाइपलाइन कार्य के लिए 2,66,99,244 रुपये के अंतिम बिल को मंजूरी देने के लिए ठेकेदार से कथित तौर पर पैसे मांगे थे। एसीबी के अधिकारियों के मुताबिक, गायकवाड़ ने ठेकेदार से अपने लिए और तत्कालीन सब-डिविजनल इंजीनियर (एसडीई), एमआईडीसी, अहमदनगर सब-डिवीजन से बैक-डेटेड आउटवर्ड (बिल) को मंजूरी देने और तत्कालीन एसडीई के हस्ताक्षर प्राप्त करने के लिए रिश्वत मांगी थी।