सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण के एक मामले में सुनवाई करते हुए अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि वह बिना हाईकोर्ट की इजाजत के आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत आरोपी सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज मामले वापस नहीं ले सकेंगी।
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प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह भी कहा कि वह नेताओं के खिलाफ मामलों की निगरानी के लिए शीर्ष अदालत में एक विशेष पीठ गठित करने पर विचार कर रही है। जस्टिस विनीत सरन और सूर्यकांत वाली पीठ ने आदेश दिया कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों की सुनवाई करने वाले विशेष अदालतों के न्यायाधीशों को अगले आदेश तक स्थानांतरित नहीं किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अदालतों में कानून निर्माताओं के विरुद्ध लंबित और निपटाए गए मामलों के बारे में उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरलों से जानकारी मांगी। कोर्ट ने सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरलों को विशेष अदालतों द्वारा सांसदों के खिलाफ तय किए गए मामलों के बारे में एक विशेष प्रारूप में जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष लंबित मामलों और उनके चरणों का विवरण भी मांगा है।
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दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें कहा गया था कि मौजूदा सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज मुकदमों का स्पेशल कोर्ट में स्पीडी ट्रायल होना चाहिए। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी हाई कोर्ट के रजिस्टार जनरल अपने चीफ जस्टिस को सांसद और विधायकों के खिलाफ लंबित निपटारे की जानकारी दें।
शीर्ष अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसरिया और पीठ की सहायता कर रही वकील स्नेहा कलिता की रिपोर्ट पर गौर करने के बाद यह आदेश दिया।
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पीठ वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा 2016 की एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सांसद और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे में तेजी लाने के अलावा दोषी नेताओं पर चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी।