विदेश मंत्री एस जयशंकर तीन दिनों के एशिया के दौरे पर हैं। इसी क्रम में वे दक्षिण कोरिया और भारत के बीच 10वीं संयुक्त आयोग की बैठक में शामिल होने के लिए सियोल पहुंचे। यहां जयशंकर ने दक्षिण कोरिया में रहने वाले भारतीय प्रवासियों से भी मुलाकात की।
सियोल में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने देश की प्रगति में उनके योगदान को सराहा। उन्होंने कहा कि अपने देश से बाहर रहना हमेशा आसान नहीं होता। जो लोग विदेश में रहते हैं वे जानते हैं कि उनके दिल और दिमाग का एक बड़ा हिस्सा हमेशा भारत में रहता है। विदेश मंत्री ने कहा कि आप सभी अलग-अलग तरीकों से हमारे देश की प्रगति में योगदान देते हैं।
सियोल में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने कहा कि आप देख सकते हैं कि कैसे एक भारतीय भारत के तटों को छोड़कर आत्मविश्वास के साथ ऐसा कर रहा है। यह आत्मविश्वास पहले उनके पास नहीं था। लेकिन अब उन्हें यह विश्वास है कि जो भी हो उनके देश में एक ऐसी सरकार है जो उनकी देखभाल करेगी। यह एक बहुत बड़ी भावना है।
विदेश मंत्री जयशंकर ने मणिपुर की स्थिति को बताया दुखद
सियोल में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि मणिपुर में जो हुआ वह दुखद है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत के सभी लोग पूर्वोत्तर राज्य में सामान्य स्थिति को वापस देखना चाहते हैं। उन्होंने यह टिप्पणी एक प्रवासी के मणिपुर की स्थिति पर पूछे गए सवाल पर की।
इससे पहले विदेश मंत्री ने नेशनल डिप्लोमैटिक एकेडमी में भी अपना संबोधन दिया। उन्होंने कहा कि पहले से अधिक अनिश्चित और अस्थिर दुनिया में कोरिया गणराज्य के साथ भारत की साझेदारी अधिक मजबूत हो रही है। उन्होंने कहा कि ऐसे में वैश्विक व्यवस्था को नया आकार देने में सक्रिय रूप से योगदान देने की भारत और दक्षिण कोरिया की जिम्मेदारी बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि जब कुछ शक्तियों ने इस प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया था वह अब हमारे पीछे है।
इस दौरान उन्होंने आतंकवाद से मुकाबले के लिए मिल कर प्रयास करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हाल के सालों में आतंकवाद और सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रसार जैसी चुनौतियों ने हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित किया है। हमने वैश्विक व्यवस्था की बदलती धाराओं के प्रति संवेदनशील होना सीखा है। हालांकि हमारे समाधान हमारी विशेष राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुकूल हो सकते हैं, लेकिन सामान्य लाभ के साथ मिलकर काम करना हमेशा हमारी प्राथमिकता रही है।
उन्होंने कहा कि इंडो-पैसिफिक की अवधारणा पिछले कुछ दशकों में भू-राजनीतिक बदलावों के परिणामस्वरूप उभरी है। इंडो-पैसिफिक में व्यापार, निवेश, सेवाओं, संसाधनों, लॉजिस्टिक्स और प्रौद्योगिकी के मामले में भारत की हिस्सेदारी दिन-ब-दिन बढ़ रही है। इस क्षेत्र की स्थिरता, सुरक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित करना हमारे लिए महत्वपूर्ण है। दक्षिण कोरिया के साथ अपने संबंधों का जिक्र करते हुए एस जयशंकर ने कहा कि अपनी क्षमता का एहसास करने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि दोनों देश विभिन्न क्षेत्रों में अपनी भागीदारी बढ़ाएं। इसके लिए दोनों देशों को अधिक राजनीतिक चर्चा और अधिक रणनीतिक बातचीत की जरूरत है।
इससे पहले, उन्होंने दक्षिण कोरिया के प्रधानमंत्री हान डक सू और राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशक चांग हो-जिन से मुलाकात की। प्रधानमंत्री से मुलाकात के दौरान उन्होंने भारत-कोरिया संबंधों, हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ ही व्यापार और आर्थिक सहयोग पर चर्चा की। वे बुधवार को सियोल में होने वाली दोनों देशों के बीच 10वीं संयुक्त आयोग की बैठक में शामिल होंगे। इस बैठक में द्विपक्षीय सहयोग की समीक्षा के साथ ही दोनों देशों के संबंधों में और मजबूती लाने के लिए नए उपाय तलाशे जाने की संभावना है।