अमरीकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने परमाणु समझौते में अमरीका की वापसी को लेकर निराशा जताई है। अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प परमाणु समझौते को तार-तार करते हुए और अंतरराष्ट्रीय नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए मई 2018 में इस समझौते से निकल गए थे, जो 2015 में ईरान और विश्व की 6 शक्तियों के बीच हुआ था।
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अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने ट्रम्प की इस ग़लती में सुधार का वादा किया था, जिसके बाद वियना में समझौते की बहाली और ईरान से अमरीकी प्रतिबंधों की समाप्ति वार्ता शुरू हुई थी, लेकिन फ़िलहाल यह वार्ता रुकी हुई है और ब्लिंकेन इसे फिर से शुरू करने को लेकर निराशा जता रहे हैं।
इससे एक दिन पहले ही ईरानी राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी ने यूरोपीय परिषद के प्रमुख से टेलीफ़ोन पर बात करते हुए कहा था कि ट्रम्प प्रशासन हो या बाइडन प्रशासन, ईरान को लेकर अमरीकी नीतियों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है और वाशिगंटन आज भी प्रतिबंध और दबाव की नीति पर आगे बढ़ रहा है।
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ईरानी राष्ट्रपति ने भी अमरीका को चेता दिया है कि वार्ता और दबाव दोनों एक साथ नहीं चल सकते और इस तरह की कूटनीति का कोई परिणाम नहीं निकलेगा। तेहरान के पास वाशिंगटन पर भरोसा नहीं करने के कई कारण हैं, जिसमें सबसे प्रमुख अविश्वास है, क्योंकि अमरीकियों ने हर मोड़ पर समझौतों और वादों की धज्जियां उड़ाकर दुनिया पर यह साबित कर दिया है कि उन्हें अपने तथाकथित हितों के मुक़ाबले में किसी भी समझौते या वादे की कोई परवाह नहीं है।
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अमरीका वियना वार्ता में ईरान को किसी भी तरह की कोई रियायत देने के लिए तैयार नहीं था, इसके विपरीत वह प्रोपैगंडा करके ईरान की शांतिपूर्ण परमाणु कार्यवाहियों के बारे में नकारात्मक वातावरण उत्पन्न करना चाहता है। हालांकि ईरान पूर्व की तरह आईएईए से पूर्ण सहयोग कर रहा है और अपने परमाणु कार्यक्रम में पारदर्शिता से काम ले रहा है। इसलिए अगर वियना में वार्ता फिर से शुरू नहीं होती है या वार्ता नाकाम रहती है तो इसकी पूरी ज़िम्मेदारी अमरीका पर ही होगी।