शिक्षक भर्ती मामले में बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। ममता सरकार ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी है। यह मामला साल 2016 में की गई शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की लगभग 24,000 नियुक्तियों को रद्द करने के फैसले से जुड़ा है। नियुक्तियों को रद्द करने के कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने बीते सोमवार को पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग पैनल द्वारा की गई स्कूल शिक्षक भर्ती रद्द कर दी थी। इस मामले में 23,753 नौकरियां रद्द करने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद इन सभी शिक्षकों को चार हफ्ते में वेतन भी वापस करना होगा। इन सभी टीचर्स को ब्याज के साथ ये वापस लौटाना होगा। वहीं मंगलवार को पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव को हाईकोर्ट ने 2016 के स्कूल नौकरी मामले में सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए गए पूर्व लोक सेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने के लिए 23 अप्रैल तक का समय दिया था। लेकिन मुख्य सचिव ने अब तक इस आदेश का पालन नहीं किया। इस बात से नाराज हाईकोर्ट ने कहा था अगली बार यदि मुख्य सचिव ने अदालत के आदेश का पालन नहीं किया तो उन पर कार्रवाई की जाएगी।
बता दें कि इस घोटाले में पूर्व शिक्षा राज्यमंत्री पार्थ चटर्जी, पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग के पूर्व सचिव अशोक साहा, पूर्व एसएससी अध्यक्ष सुबीरस भट्टाचार्य और एसएससी की सलाहकार समिति के पूर्व अध्यक्ष शांति प्रसाद सिन्हा को गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तार व्यक्तियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी का सीबीआई का आवेदन 2022 से लंबित है। न्यायमूर्ति गौरांग कंठ ने कहा कि निर्णय लेते समय आरोपी व्यक्तियों की स्थिति, अधिकार या शक्ति से डरना नहीं चाहिए।
उच्चतम न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दाखिल एक मुकदमे पर सुनवाई बुधवार को एक मई तक के लिए स्थगित कर दी। बंगाल सरकार ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) पर राज्य से बिना मंजूरी प्राप्त किए चुनाव के बाद हिंसा मामलों में जांच को आगे बढ़ाने का आरोप लगाया है।
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने सुनवाई को स्थगित करने के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के अनुरोध के बाद मामले को स्थगित कर दिया। तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि उन्हें नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ के सामने पेश होना है, जिस कारण सुनवाई को स्थगित कर दिया जाये। मेहता ने पीठ से कहा, ‘मैं जानता हूं कि मैंने कई मौकों पर स्थगन का अनुरोध किया है लेकिन आज संविधान पीठ के समक्ष मेरे पेश होने की बारी है। यह मेरे नियंत्रण में नहीं है।’
पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल पेश हुए थे। पश्चिम बंगाल सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत केंद्र सरकार के खिलाफ शीर्ष अदालत में एक मुकदमा दाखिल किया है।
बंगाल सरकार का आरोप है कि राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में आने वाले मामलों की जांच के लिए संघीय एजेंसी को दी गई मंजूरी वापस ले ली गयी, जिसके बावजूद सीबीआई प्राथमिकियां दर्ज कर रही है और अपनी जांच आगे बढ़ा रही है। अनुच्छेद 131 एक राज्य को केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच विवाद की स्थिति में सीधे उच्चतम न्यायालय में जाने का अधिकार देता है। पश्चिम बंगाल सरकार ने 16 नवंबर, 2018 को राज्य में जांच और छापेमारी करने के लिए सीबीआई को दी गई आम सहमति वापस ले ली थी।