सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें केंद्र और अन्य को निर्देश देने की मांग की गई है कि वे एक उपयुक्त प्रणाली बनाने के लिए कदम उठाएं, जो नागरिकों को संसद में याचिका दायर करने और उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर विचार-विमर्श शुरू करने का अधिकार दे। याचिका शुक्रवार को जस्टिस के एम जोसेफ और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई।
पीठ ने याचिकाकर्ता करण गर्ग की ओर से पेश वकील से याचिका की एक प्रति केंद्र के वकील को देने को कहा। कोर्ट ने मामले को फरवरी तक के लिए स्थगित कर दिया। याचिकाकर्ता की ओर से वकील रोहन जे. अल्वा पेश हुए।
याचिका में एक घोषणा की मांग की गई है कि संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (ए) और 21 के तहत नागरिकों का मौलिक अधिकार है कि वे सीधे संसद में याचिका दायर करें ताकि उनके द्वारा उठा गए मुद्दों पर बहस, चर्चा और विचार-विमर्श शुरू किया जा सके।
मौजूदा रिट याचिका में अनुरोध किया गया है कि प्रतिवादियों (केंद्र और अन्य) द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाना जरूरी है ताकि बिना किसी बाधा और कठिनाइयों के नागरिकों की आवाज सुनी जा सके।
याचिका में कहा गया है कि देश के एक सामान्य नागरिक के रूप में याचिकाकर्ता ने जब लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने की बात की और लोगों द्वारा वोट देने और प्रतिनिधियों का चुनाव करने के बाद आगे किसी भी भागीदारी की कोई गुंजाइश नहीं बची तो खुद को असहाय महसूस किया।
याचिकाकर्ता ने कहा, ऐसे किसी भी औपचारिक तंत्र का पूरी तरह अभाव है, जिसके द्वारा नागरिक सांसदों के साथ जुड़ सकते हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठा सकते हैं कि संसद में महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस हो। इस तंत्र की गैरमौजूदगी निर्वाचित प्रतिनिधियों और नागरिकों के बीच एक खाली स्थान पैदा करती है। लोग कानून बनाने की प्रक्रिया से कटे हुए हैं।
दलील में कहा गया, भारतीय लोकतंत्र में पूरी तरह से भाग लेने के लिए नागरिकों को उनके निहित अधिकारों से दूर करना गंभीर चिंता का विषय है और यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे तुरंत संबोधित किए जाने की आवश्यकता है।