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Thursday, November 21, 2024

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लोकसभा चुनाव: डिसइंफो लैब की रिपोर्ट में भारत के आम चुनाव में देशी-विदेशी मीडिया पर साजिश का बड़ा खुलासा

डिसइंफो लैब…एक संस्था जिसने भारत में आम चुनावों के दौरान विदेशी हस्तक्षेप के आरोप लगाए थे। एक बार फिर डिसइंफो लैब ने चुनाव में हस्तक्षेप को लेकर बड़े दावे किए हैं। यह दावा किया गया है कि भारत में लोकसभा चुनावों में हस्तक्षेप के लिए बड़ी शक्तियों ने छोटी ताकतों को सहायता प्रदान की। यह एक ऐसा जाल है, जिसका तानाबाना केवल विदेश में ही नहीं बल्कि भारत में भी बुना गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत एक उभरती हुई आर्थिक और रणनीतिक शक्ति है। भारत की विदेश नीतियों से वैश्विक परिस्थितियों को एक नया आकार मिलता है। रूस-यूक्रेन और इस्राइल-हमास युद्ध के बीच भारत ने उत्कृष्ट विदेश नीति का प्रदर्शन किया। रिपोर्ट में बताया गया है कि इसी कारण भारत में आम चुनावों पर वैश्विक मीडिया की नजर रही।

डिसइंफो लैब का दावा है कि जब करोड़ों भारतीय आम चुनाव के दौरान अपना भविष्य तय कर रहे थे, तब वैश्विक मीडिया का एक वर्ग मतदाताओं के निर्णयों को प्रभावित करने की एक भयंकर साजिश की योजना बना रहा था। दावा किया गया है कि इस योजना के क्रियान्वयन के लिए व्यवस्थित रूप से वित्तपोषण भी किया गया। इसमें केवल विदेशी ही नहीं बल्कि भारतीय मीडिया भी शामिल थी। विभिन्न तरीकों से भारत में आम चुनावों को प्रभावित करने की कोशिशें की गईं।

फ्रांस के पत्रकार क्रिस्टोफ जॉफरलेट पर डिसइंफो लैब के आरोप डिसइंफो लैब ने दावा किया है कि कुछ मीडिया संस्थानों के लेखों में एक विशेष पैटर्न देखने को मिला, जिससे इस रिपोर्ट को तैयार किया गया है। रिपोर्ट में इस बात पर आश्चर्य जताया गया है कि इस दौरान एक विशेष प्रकार के आख्यान को आकार देने की कोशिश कर मतदाताओं का ध्यान भटकाने की कोशिश की गई। डिसइंफो लैब का दावा है कि फ्रांस का समाचार पत्र ‘ले मोंडे’ ऐसी गतिविधियों में शामिल रहा। रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि फ्रांस के राजनीतिक विशेषज्ञ क्रिस्टोफ जॉफरलेट इन गतिविधियों के केंद्र बिंदु थे। भारत में आम चुनाव को प्रभावित करने के लिए जॉफरलेट के बयानों को आधार बनाया गया। डिसइंफो लैब ने दावा किया है कि इस खेल में सिर्फ जॉफरलेट ही अकेले खिलाड़ी नहीं थे।

फंडिंग कहां से की गई? डिसइंफो लैब ने अपनी रिपोर्ट में हेनरी लुइस फाउंडेशन (एचएलएफ) और जॉर्ज सोरोस ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (ओएसएफ) का भी जिक्र किया है। बताया गया है कि एचएलएफ और ओएसएफ द्वारा भारत में आम चुनाव को प्रभावित करने के लिए फंडिंग की गई। रिपोर्ट में जिन समूहों और व्यक्तियों का नाम उजागर किया गया है, वे फ्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका से संचालित किए गए हैं। रिपोर्ट में कुछ और बड़े आरोप भी लगाए गए हैं।

डिसइंफो लैब ने अपनी रिपोर्ट में हेनरी लुइस फाउंडेशन (एचएलएफ) और जॉर्ज सोरोस ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (ओएसएफ) का भी उल्लेख किया है। बताया गया है कि एचएलएफ और ओएसएफ ने भारत में आम चुनावों को प्रभावित करने के लिए धनराशि प्रदान की। रिपोर्ट में जिन समूहों और व्यक्तियों का नाम सामने आया है, वे फ्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका से संचालित होते हैं। रिपोर्ट में कुछ अन्य बड़े आरोप भी लगाए गए हैं।

डिसइंफो लैब की रिपोर्ट में फ्रांस के इन मीडिया संस्थानों का उल्लेख
डिसइंफो लैब का कहना है कि फ्रांस के कई मीडिया संस्थानों ने भारत में आम चुनावों में हस्तक्षेप के लिए विभिन्न प्रकार के लेख प्रकाशित किए। इनमें ले मोंडे के साथ-साथ वाई ले सोइर, ला क्रॉइक्स (इंटरनेशनल), ले टेम्प्स, रिपोर्टर्रे और रेडियो फ्रांस इंटरनेशनेल (आरएफआई) जैसे संस्थान शामिल हैं। इन सभी को भारतीय चुनावों में जनता की राय को अलग दिशा देने के लिए निर्देशित किया गया। दावा किया गया है कि इन सभी मीडिया संस्थानों का नेतृत्व ले मोंडे ने किया।

ऐसे लेखों को प्रकाशित करने पर जोर
डिसइंफो लैब का कहना है कि ले मोंडे ने आम चुनावों के मद्देनजर ‘भारत में बढ़ते इस्लामोफोबिया (इस्लाम के नाम पर भय पैदा करना)’ और ‘मुस्लिमों को बदनाम करने’ जैसे विषयों पर विभिन्न लेख प्रकाशित किए। क्रिस्टोफ जॉफरलेट के लेखों को केवल फ्रांस में ही नहीं बल्कि भारत के कई मीडिया संस्थानों में भी प्रकाशित किया गया। डिसइंफो लैब ने अपनी रिपोर्ट को क्रिस्टोफर जॉफरलेट को सामान्य स्रोत (द कॉमन सोर्स) नाम दिया है।

डिसइंफो लैब का दावा- जॉफरलेट को मिले 3.85 लाख डॉलर
डिसइंफो लैब की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके बदले क्रिस्टोफ जॉफरलेट को अमेरिका के हेनरी लुइस फाउंडेशन (एचएलएफ) ने बहुत बड़ी धनराशि प्रदान की थी। डिसइंफो लैब के अनुसार, जॉफरलेट को ‘हिंदू बहुसंख्यकों के समय में मुस्लिम (Muslims in a Time of Hindu Majoritarianism)’ नामक योजना पर काम करने के लिए 3.85 लाख डॉलर की धनराशि दी गई।

डिसइंफो ने अपनी रिपोर्ट में आरोप लगाया कि क्रिस्टोफ और उनके सहयोगी गाइल्स वर्नियर्स ने अशोक विश्वविद्यालय में त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा (टीसीपीडी) के माध्यम से एक कहानी को जबरन बढ़ावा दिया। इस बात पर जोर दिया गया कि भारत की राजनीति में निचली जातियों का कम प्रतिनिधित्व है।

इन्हें मिली आर्थिक मदद- डिसइंफो रिपोर्ट
1- डिसइंफो लैब का कहना है कि एचएलएफ ने वर्ष 2020 से 2024 तक भारत विरोधी एजेंडा चलाने के लिए कुछ और संस्थानों को धनराशि प्रदान की। डिसइंफो ने अपनी रिपोर्ट में बर्कले सेंटर फॉर रिलिजन, पीस एंड वर्ल्ड अफेयर्स (Berkley Center for Religion, Peace and World Affairs) का भी नाम लिया है।

2- रिपोर्ट में कहा गया है कि 3.46 लाख डॉलर की आर्थिक सहायता प्रदान की गई। इसके बाद बर्कले संस्थान ने हिंदू अधिकार और भारत की धार्मिक कूटनीति (The Hindu Right and India’s Religious Diplomacy) पर एक रिपोर्ट तैयार की।

3- डिसइंफो की रिपोर्ट में कहा गया है कि एचएलएफ ने सीईआईपी यानी कार्नेगी इडॉमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस (Carnegie Endowment for International Peace) को सत्तावादी दमन, हिंदू राष्ट्रवाद (Authoritarian repression, Hindu Nationalism) और बढ़ते हिंदुत्व पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए 1.20 लाख डॉलर की धनराशि दी।

4- डिसइंफो के अनुसार सीईआईपी को इसके बाद एक और रिपोर्ट तैयार करने के लिए 40 हजार डॉलर की धनराशि दी गई। आरोप है कि यह धनराशि वर्ष 2019 में लोकसभा चुनावों से ठीक पहले ‘सत्ता में भाजपा: भारतीय लोकतंत्र और धार्मिक राष्ट्रवाद’ (The BJP in Power: Indian Democracy and Religious Nationalism) पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए दी गई।

5- डिसइंफो की रिपोर्ट में कहा गया है कि एचएलएफ ने ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) को एशिया में हिंसा पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए तीन लाख डॉलर की धनराशि दी। एचआरडब्ल्यू ने अपनी रिपोर्ट में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बजाय भारत का नाम लिया।

6- डिसइंफो ने यह आरोप भी लगाया है कि ऑड्रे ट्रुश्के के संस्थान साउथ एशिया एक्टिविस्ट कलेक्टिव (एसएएसएसी) को एचएलएफ ने हिंदू राष्ट्रवाद पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए भी धनराशि दी।

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