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Friday, November 22, 2024

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कोर्ट ने महिला ड्रग तस्कर को जमानत देने से किया इनकार, कहा- समाज के हित के लिए रिहाई हानिकारक

मुंबई की एक विशेष अदालत ने ड्रग्स मामले में गिरफ्तार एक महिला को जमानत देने से इनकार कर दिया। वहीं कोर्ट ने ये कहा कि अपराध जघन्य प्रकृति का है और उसे रिहा करना समाज के हित के लिए नुकसानदायी हो सकता है। बता दें कि पेशे से गायिका प्रियंका करकौर को दिसंबर 2023 में कई अन्य व्यक्तियों के साथ कथित तौर पर व्यवसाय करने की मात्रा में ड्रग्स रखने के आरोप में हिरासत में लिया गया था।

ये अपराध जघन्य प्रकृति का है- कोर्ट
इस महीने की शुरुआत में पारित एक आदेश में, विशेष एनडीपीएस अदालत के न्यायाधीश महेश जाधव ने कहा कि महिला के पास से मिले ड्रग्स से पता चलता है कि आरोपी ने अपराध में सक्रिय भूमिका निभाई थी। इस साथ महिला की जमानत याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने कहा, आरोपी की तरफ से किया गया कथित अपराध जघन्य प्रकृति का है।

आरोपी से बरामद किया गया था 14 ग्राम चरस और कैश
वहीं मामले में आरोपी महिला की तरफ से दायर की गई याचिका में कहा गया है कि जांच एजेंसी की तरफ से कथित तौर पर बरामद की गई नकदी उससे संबंधित नहीं थी। जिस पर अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि सह-आरोपी के साथ कार में बैठी प्रियंका करकौर से 14 ग्राम चरस बरामद की गई थी। इसके अलावा, आरोपी के अलग-अलग नामों वाले फोटो वाले दो आधार कार्ड और उसके घर से 17 लाख 6 हजार 250 रुपये नकद बरामद किए गए। 

एनडीपीएस की धारा 37 के तहत दर्ज हो केस
अभियोजन पक्ष ने कहा कि बरामद की गई ड्रग्स की मात्रा व्यवसायिक मात्रा है, जिसके लिए नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस) की धारा 37 (वाणिज्यिक मात्रा से जुड़े अपराध) के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि जांच से पता चलता है कि आरोपी ड्रग्स की तस्करी और सह-आरोपियों के साथ मिलीभगत में शामिल है। इस स्तर पर, आरोपी प्रथम दृष्टया यह साबित करने में विफल रही कि वह अपराध में शामिल नहीं थी। 

‘आरोपी को जमानत पर रिहा करने का कोई उचित आधार नहीं’
अदालत ने कहा, उपरोक्त तथ्यों और चर्चा और रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री को देखते हुए, इस स्तर पर आरोपी की रिहाई बड़े पैमाने पर समाज के हित के लिए हानिकारक हो सकती है। एनडीपीएस अधिनियम के तहत इस तरह के अपराधों में जमानत देने में उदार दृष्टिकोण भी अनुचित है। न्यायाधीश ने कहा कि रिकार्ड में उपलब्ध सामग्री के आधार पर और अपराध की गंभीरता को देखते हुए, इस स्तर पर आरोपी को जमानत पर रिहा करने का कोई उचित आधार नहीं है।

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