सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के एक आदेश के खिलाफ एक व्यक्ति की याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि वह हेपेटाइटिस वैक्सीन के प्रशासन के संबंध में ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड की ओर से सेवा में कमी को ठीक करने में बुरी तरह से विफल रहा है।
मामले के मुताबिक, हेपेटाइटिस बी से बचाव के लिए इम्युनिटी हासिल करने के लिए व्यक्ति ने अपने परिवार के सदस्यों के साथ एंगरिक्स-बी वैक्सीन की दोबारा खुराक लेने के लिए पारिवारिक चिकित्सक से संपर्क किया।
अपीलकर्ता के परिवार के सदस्यों को इस दवा से कोई प्रतिकूल प्रतिक्रिया नहीं हुई, हालांकि वैक्सीन लेने के चार दिनों बाद अपीलकर्ता को अपने बाएं कंधे में गंभीर दर्द महसूस हुआ, जहां इंजेक्शन लगाया गया था और उसे अपने कंधे को हिलाते समय दर्द हो रहा था। फिर उसे स्थायी विकालंगता हो गई। अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि उसके कंधे में अचानक स्थायी विकलांगता विकसित हो गई, जो उसके अनुसार ग्लैक्सो द्वारा निर्मित वैक्सीन एंजेरिक्स-बी की प्रतिकूल प्रतिक्रिया के कारण हुई है।
जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने कहा कि यह दवा प्रमाणन के बाद बाजार में उपलब्ध कराई जाती है और ऐसा कुछ भी रिकॉर्ड में नहीं रखा गया है जिससे यह संकेत मिलता हो कि यह ऐसी दवा है जो बिना डॉक्टर के पर्चे के उपलब्ध है। बेंच ने कहा, अगर एक ही दवा परिवार के सभी सदस्यों को दी गई थी और अपीलकर्ता को तीसरी खुराक दिए जाने के बाद असुविधा का सामना करना पड़ा था, तो यह भी सवाल उठेगा कि क्या इसे उसी तरह से और इस स्थान पर दिया गया था जहां इसे दिया जाना चाहिए।
बेंच ने कहा, ‘अगर मामले के इन पहलुओं को ध्यान में रखा जाता, तो वास्तव में अपीलकर्ता द्वारा लगाए गए आरोप उक्त पारिवारिक डॉक्टर को भी जिम्मेदार बनाते।’ इसने आगे कहा, आदर्श रूप से उन्हें (पारिवारिक डॉक्टर) अपना हलफनामा दायर करने के बजाय कार्यवाही में एक पक्ष प्रतिवादी होना चाहिए था।’ शीर्ष कोर्ट ने कहा कि इंजेक्शन के साथ या शीशी पर दी गई जानकारी में मायोसिटिस (स्थायी विकलांगता) को प्रतिकूल प्रतिक्रिया के रूप में जिक्र न करना फार्मा कंपनी की ओर से ‘सेवा में कमी’ के बराबर नहीं है।