बंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि आधुनिक समाज में घरेलू जिम्मेदारियों का बोझ पति और पत्नी को समान रूप से उठाना चाहिए। न्यायमूर्ति नितिन सांबरे और न्यायमूर्ति शर्मिला देशमुख की खंडपीठ ने 6 सितंबर को 35 वर्षीय एक व्यक्ति द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।
व्यक्ति ने अपनी तेरह साल पुरानी शादी को खत्म करने की मांग की थी। न्यायाधीशों ने कहा कि वह अलग रह रही अपनी पत्नी के खिलाफ क्रूरता के अपने दावे को साबित नहीं कर सका। व्यक्ति ने मार्च 2018 में एक पारिवारिक अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें तलाक की मांग करने वाली उसकी याचिका खारिज कर दी गई थी। दोनों ने 2010 में शादी की थी।
व्यक्ति ने याचिका में दलील दी कि उसकी पत्नी हमेशा अपनी मां के साथ फोन पर लगी रहती थी और घर का काम नहीं करती थी। महिला ने दावा किया कि उसे कार्यालय से लौटने के बाद घर के सभी काम करने के लिए मजबूर किया गया था, और जब उसने अपने परिवार से संपर्क किया तो उसे दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा। उसने यह भी दावा किया था कि उससे अलग रह रहे उसके पति ने कई मौकों पर उसका शारीरिक शोषण किया।
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि पुरुष और महिला दोनों कार्यरत हैं और पत्नी से घर के सभी काम करने की उम्मीद करना एक प्रतिगामी मानसिकता को दर्शाता है। अदालत ने कहा, आधुनिक समाज में घरेलू जिम्मेदारियों का बोझ पति और पत्नी दोनों को समान रूप से वहन करना पड़ता है। घर की महिलाओं से पूरी तरह से घर की जिम्मेदारियों को उठाने की उम्मीद करने वाली आदिम मानसिकता को सकारात्मक बदलाव से गुजरने की जरूरत है।
अदालत ने कहा कि वैवाहिक संबंध से पत्नी अपने माता-पिता से अलग-थलग नहीं पड़ जानी चाहिए और उससे अपने माता-पिता के साथ संबंध तोड़ने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। पीठ ने कहा, ‘किसी के माता-पिता के संपर्क में रहने का मतलब किसी भी तरह से दूसरे पक्ष को मानसिक पीड़ा देना नहीं माना जा सकता।’