बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने शनिवार को फैसला सुनाया कि महाराष्ट्र में पंचायत सदस्यों के लिए निर्धारित दो बच्चों की सीमा में केवल जैविक संतानें शामिल होंगी, सौतेले बच्चे नहीं। महाराष्ट्र जिला परिषद और पंचायत समिति अधिनियम उन लोगों को स्थानीय निकाय चुनाव (ग्राम पंचायत से नगर निगम) लड़ने से अयोग्य घोषित करता है जिनके दो से अधिक बच्चे हैं।
न्यायमूर्ति ए एस चंदुरकर और न्यायमूर्ति वृषाली जोशी की खंडपीठ ने खैरुनिसा शेख चंद की याचिका पर एकल पीठ द्वारा सुनवाई करने का निर्देश दिया, जिसमें ग्राम पंचायत के सदस्य के रूप में उनकी अयोग्यता को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि उनके तीन से अधिक बच्चे हैं।
एकल पीठ ने यह स्पष्ट करने के लिए मामले को खंड पीठ के पास भेज दिया कि क्या महाराष्ट्र ग्राम पंचायत अधिनियम के प्रावधानों में ‘दो बच्चे’ शब्द का उपयोग सामान्य अर्थ में सौतेले बच्चों को शामिल करने के लिए किया गया है या सीमित अर्थ में केवल व्यक्ति से पैदा हुए बच्चों को शामिल करने के लिए किया गया है। खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि ‘दो बच्चों’ की अभिव्यक्ति का अधिनियम के प्रावधान में प्रयुक्त सदस्य शब्द से सीधा संबंध है।
याचिकाकर्ता के वकील सुकृत सोहोनी ने तर्क दिया कि अधिनियम के तहत अभिव्यक्ति ‘दो बच्चों’ का अर्थ केवल संबंधित व्यक्ति के जैविक बच्चे होंगे और व्यक्ति के सौतेले बच्चों को अयोग्यता के लिए विचार नहीं किया जा सकता है।
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि एक व्यक्ति, पुरुष या महिला, को अयोग्य ठहराया जा सकता है यदि उन्होंने पहले विवाह में बच्चे/बच्चों को जन्म दिया हो और बाद के विवाह में फिर से बच्चे/बच्चों को जन्म दिया हो।