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Thursday, November 21, 2024

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अमेरिका से निकलने के फैसले को जो बाइडेन ने सही ठहराया, तालिबान को चेतावनी भी दी

अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफ़ग़ानिस्तान से अपनी फ़ौज को वापस बुलाने के फैसले का समर्थन करते हुए तालिबान को चेतावनी भी दी कि अगर तालिबान ने अमेरिकी सैनिकों पर हमला किया तो इसके गंभीर नतीजे भुगतने होंगे। उन्होंने कहा, “जब अफगान स्वयं अपने लिए लड़ना नहीं चाहते तो अमेरिकियों को ऐसी लड़ाई में नहीं पड़ना चाहिए और इसमें अपनी जान नहीं गंवानी चाहिए।”

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बाइडेन ने अफ़ग़ानिस्तान के मामले पर कल अपने सम्बोधन में कहा कि तालिबान तेजी से अफगानिस्तान पर कब्ज़ा कर सका क्योंकि वहां के नेता देश छोड़ कर भाग गए और अमेरिकी सैनिकों द्वारा प्रशिक्षित अफ़ग़ान सैनिक उनसे लड़ना नहीं चाहते। उन्होंने आगे कहा, “सच ये है कि वहां तेज़ी से स्थिति बदली क्योंकि अफ़ग़ान नेताओं ने हथियार डाल दिए और कई जगहों पर अफ़ग़ान सेना ने बिना संघर्ष के हार स्वीकार कर ली।”

टेलीविज़न पर लाइव प्रसारित अपने भाषण में बाइडन ने सैनिक वापसी के अपने निर्णय का बचाव करते हुए कहा कि वो पूरी तरह अपने फ़ैसले के पक्ष में हैं। हालांकि अफगानिस्तान में तालिबान के तेज़ी से उभार पर उन्होंने माना, ”जैसी उम्मीद की जा रही थी उससे कहीं ज्यादस तेज़ी से अफगानिस्तान में स्थितियां बदली हैं।”

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अपने निर्णय के बारे में बाइडन ने कहा कि तालिबान ने साथ बातचीत उनके पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में शुरू की गई थी जिसके बाद अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी कम की गई। उन्होंने कहा, “राष्ट्रपति के तौर पर मेरे सामने दो विकल्प थे- या तो पहले से हुए समझौते का पालन किया जाता या फिर तालिबान के साथ लड़ाई शुरू की जाती। दूसरा विकल्प चुनने पर एक बार फिर जंग की शुरुआत हो जाती।”

बाइडन ने कहा कि एक मई के बाद अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान से अमेरिकी सैनिकों को बचाने का कोई समझौता नहीं था। उन्होंने कहा, “अफ़ग़ानिस्तान से अपनी सेना वापस बुलाने का कोई सही समय नहीं था। जैसा उम्मीद की गई थी उससे ज्यादा तेज़ी से अमेरिका ने अफगानिस्तान में अपने सैनिकों की मौजूदगी समाप्त कर दी है।”

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बाइडन ने यह भी कहा कि उन्होंने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी को नसीहत दी थी कि वो संकट का सियासी हल तलाशने के लिए तालिबान से साथ बातचीत करें, मगर उनकी सलाह नहीं मानी गई। उन्होंने कहा, “अशरफ़ ग़नी ने कहा कि आवश्यकता पड़ने पर अफ़ग़ान सैनिक तालिबान से लड़ेंगे, मगर मुझे लगता है कि ये उनका ग़लत फ़ैसला था।”

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