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Sunday, April 28, 2024

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Congress को एक और झटका, लाल बहादुर शास्त्री के पोते ने इस्तीफा सौंपा; जानें कौन हैं विभाकर शास्त्री

लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे पास आ रहे हैं, वैसे-वैसे कांग्रेस को झटका लगता जा रहा है। एक के बाद एक नेता पार्टी का साथ छोड़ रहे हैं। अब पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पोते विभाकर शास्त्री ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। वहीं, भाजपा का हाथ थाम लिया।

विभाकर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक ट्वीट के जरिए अपने इस्तीफे का एलान किया है। विभाकर ने अपने ट्वीट में बताया कि उन्होंने पार्टी की प्राथमिकता सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। 

बता दें, शास्त्री के पोते ने उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक की मौजूदगी में पार्टी कार्यालय में भाजपा ज्वॉइन कर ली है। 

अतीत के पन्नों से
विभाकर शास्त्री की बात करें तो उन्होंने उत्तर प्रदेश की फतेहपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर साल 1998 में चुनाव लड़ा था. जबकि इसके बाद साल 1999 और साल 2009 में भी वो चुनावी मैदान में उतरे। लेकिन तीनों बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 

अगर अतीत में जाकर देंखे तो साल 2009 में संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं ने बाहरी नेताओं को तो गले लगाया था, लेकिन विरासत लेने के प्रयास को ठुकरा दिया था। पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री के पौत्र व पूर्व पीएम वीपी सिंह के पुत्र सियासी मैदान जीतने चुनाव मैदान में उतरे थे, लेकिन मतदाताओं ने विरासत को पूरी तरह से नकारकर बाहरी को ही पसंद किया था।

वर्ष 1980 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस की बयार चल रही थी, तब देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बड़े पुत्र हरीकृष्ण शास्त्री संसदीय क्षेत्र से चुनावी मैदान में उतरे थे। लोकदल के लियाकत हुसैन को पराजित कर वह चुनाव जीते और केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल में भी शामिल हुए।

जिले में औद्योगिक क्रांति की नींव रखकर श्री शास्त्री ने क्षेत्र को अपना गढ़ बनाने का प्रयास किया। इससे वर्ष 1984 के चुनाव में जनता ने फिर उन्हें चुनकर संसद भेजा। वर्ष 1989 व 91 के चुनाव में बोफोर्स का मुद्दा लेकर आए वीपी सिंह के सामने वह नहीं टिक पाए।

श्री शास्त्री के निधन के बाद इस सीट से उनके पुत्र विभाकर शास्त्री विरासत को सहेजने आगे आए। कांगेस से विभाकर ने वर्ष 1998 में चुनाव लड़ा लेकिन महज 24,688 मत ही पा सके। वर्ष 1999 में फिर भाग्य अजमाया, जिसमें 95 हजार व वर्ष 2009 में एक लाख मत हासिल कर पाए। तीन बार प्रयास के बाद भी वह अपने पिता की विरासत को नहीं सहेज पाए।

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