सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोगों को सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा सक्रियता से सूचना प्रदान करने सहित सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के प्रावधानों का उचित कार्यान्वयन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि सार्वजनिक जवाबदेही एक महत्वपूर्ण विशेषता है जो ‘कर्तव्य वाहक’ और ‘अधिकार धारकों’ के बीच संबंधों को नियंत्रित करती है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि अधिकार और जवाबदेही साथ-साथ चलती हैं। साथ ही इस बात का ध्यान दिलाया कि सभी नागरिकों को अधिनियम की धारा-3 के तहत सूचना प्राप्त करने का अधिकार है। इसी तरह, आरटीआई अधिनियम की धारा-4 में सार्वजनिक प्राधिकरणों के दायित्व के रूप में ‘कर्तव्य’ का प्रावधान किया गया है।
पीठ ने कहा, हम निर्देश देते हैं कि केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) और राज्य सूचना आयोग (एसआईसी) अधिनियम की धारा-4 के अधिदेश (Mandate) के कार्यान्वयन की निरंतर निगरानी करेंगे, जैसा कि कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा समय-समय पर जारी अपने दिशा-निर्देशों और ज्ञापनों में निर्धारित किया गया है। सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा-4 सार्वजनिक प्राधिकरणों के दायित्वों से संबंधित है।
आरटीआई अधिनियम की धारा 4(1)(बी) उस जानकारी का प्रावधान करती है जिसका सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा स्वत: संज्ञान या सक्रिय आधार पर खुलासा किया जाना चाहिए। धारा 4(2) और धारा 4(3) इस जानकारी के प्रसार की प्रक्रिया निर्धारित करती है। शीर्ष अदालत ने सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) के उस प्रावधान के प्रभावी क्रियान्वयन की मांग करने वाली याचिका पर एक फैसले में यह बात कही, जो सार्वजनिक अधिकारियों को अपने कामकाज के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी का खुद खुलासा करने का प्रावधान करता है।
शीर्ष अदालत किशन चंद जैन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सार्वजनिक प्राधिकरणों के दायित्वों से संबंधित आरटीआई अधिनियम की धारा-4 के आदेश के प्रभावी कार्यान्वयन की मांग की गई थी। जनहित याचिका में तर्क दिया गया कि यह प्रावधान आरटीआई की आत्मा है जिसके बिना यह एक आलंकारिक कानून बना हुआ है।
याचिका में केंद्रीय सूचना आयोग की रिपोर्टों का भी हवाला दिया गया है जो धारा-4 के आदेश के खराब अनुपालन को दर्शाती हैं। इसमें कहा गया है कि कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने एक कार्यालय ज्ञापन जारी किया था जिसमें तीसरे पक्ष के ऑडिट की आवश्यकता थी, लेकिन उसकी भागीदारी नहीं के बराबर देखी गई।