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Friday, April 19, 2024

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केंद्र सरकार समान नागरिक संहिता लाने की तैयारी में, बिल पेश कभी भी हो सकता है!

नई दिल्ली। देश के नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता कानून लाने के लिए केंद्र सरकार ने तैयारी शुरु कर दी है। इस कानून का केंद्रीय बिल आने वाले समय में किसी भी समय संसद में पेश किया जा सकता है। परीक्षण के तौर पर उत्तराखंड में इस कानून के बनाने की कवायद शुरू की गई है जिसमें एक कमेटी का गठन कर दिया है। इस कमेटी के लिए ड्राफ्ट निर्देश बिन्दु केंद्रीय कानून मंत्रालय ने ही दिए हैं। इससे साफ है कानून का ड्राफ्ट केंद्र सरकार के पास बना हुआ है।

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सूत्रों के मुताबिक राज्यों में बने नागरिक संहिता के कानूनों को बाद में केंद्रीय कानूनों में समाहित कर दिया जाएगा। क्योंकि एक समानता लाने के लिए कानून का केंद्रीय होना जरूरी है। राज्यों में यह कानून को परीक्षण के तौर पर बनवाया जा रहा है। यह पहला मौका है जब सरकार ने पहली बार इस कानून के लाने के बारे में इतनी स्पष्टता से कहा है। सूत्रों ने कहा कि यह कानून अवश्य आएगा लेकिन कब और किस समय आएगा, यही सवाल है।

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सरकार का इरादा था कि समान नागरिक संहिता पर राष्ट्रीय विधि आयोग से रिपोर्ट ले ली जाए लेकिन विधि आयोग के 2020 में पुनर्गठन होने के बावजूद कार्यशील नहीं होने के कारण राज्य स्तर पर कमेटियां बनाई जा रही हैं। कमेटी का फॉर्मेट विधि आयोग की तरह से ही है। इसमें सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज जस्टिस रंजना देसाई, दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज प्रमोद कोहली, पूर्व आईएएस शत्रुघ्न सिंह और दून विवि की वीसी सुरेखा डंगवाल शामिल हैं।

सूत्रों ने कहा कि यह कमेटी अन्य राज्यों मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश में भी बनाई जा सकती है। ये राज्य समान नागरिक संहिता के लिए पहले ही हामी भर चुके हैं। कमेटी के संदर्भ बिन्दु केंद्र सरकार ने दिए हैं।

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यह पूछे जाने पर कि आदिवासियों के लिए इसे कैसे लागू करेंगे, क्योंकि उनके कानून उनकी रीतियों के अनुसार होते हैं। देश में 10 से 12 करोड़ आदिवासी रहते हैं जिनमें से 12 फीसद के आसपास पूर्वोत्तर में रहते हैं। वहीं कानून के आने से संयुक्त हिन्द परिवार को आयकर में मिलने वाली छूट समाप्त हो जाएगी। सूत्रों ने कहा कि हमें एक देश के रूप में आगे बढ़ना है तो थोड़ा एडजस्ट करना होगा।

लगभग 20 फीसदी मुकदमे समाप्त होंगे

एक समान कानून बनने से विभिन्न कानूनों का जाल खत्म होगा और इससे देश में करीब 20 फीसदी दीवानी मुकदमे स्वतः: समाप्त हो सकते हैं। क्योंकि सभी नागरिकों पर आईपीसी की तरह से यह कानून लागू होगा।

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