36 C
Mumbai
Tuesday, April 30, 2024

आपका भरोसा ही, हमारी विश्वसनीयता !

मॉब लिंचिंग की घटना पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, राज्यों को आदेश- उठाए गए कदमों से कराएं अवगत

सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में मुस्लिमों के खिलाफ गौ रक्षा के नाम पर हो रही हत्या और बढ़ती मॉब लिंचिंग की घटनाओं को लेकर सख्त रुख अख्तियार किया है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में कई राज्य सरकारों को छह सप्ताह का समय दिया है। अदालत का कहना है कि इस तरह की घटनाओं में की गई कार्रवाई से छह सप्ताह के अंदर अवगत कराएं।

एक महिला संगठन की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने राज्य सरकारों से जवाब मांगा है। याचिका में गोरक्षकों द्वारा मुसलमानों के खिलाफ भीड़ हिंसा (मॉब लिंचिंग) और भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या किए जाने की घटनाओं में शीर्ष अदालत के वर्ष 2018 के फैसले के अनुरूप राज्यों को तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश दिए जाने की मांग की गई थी।

राज्यों से नहीं थी यह उम्मीद
पीठ ने कहा, ‘हमने पाया कि ज्यादातर राज्यों ने मॉब लिंचिंग के उदाहरण देने वाली रिट याचिका पर अपना जवाबी हलफनामा दायर नहीं किया है। राज्यों से यह उम्मीद की गई थी कि वे कम से कम समय में इसका जवाब देंगे कि ऐसे मामलों में क्या कार्रवाई की है। एक बार फिर हम उन राज्यों को छह सप्ताह का समय देते हैं जिन्होंने अपने जवाब दाखिल नहीं किए हैं।’

शीर्ष अदालत भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े संगठन नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वीमेन (एनएफआईडब्ल्यू) की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पिछले साल केंद्र और महाराष्ट्र, उड़ीसा, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश और हरियाणा के डीजीपी को नोटिस जारी कर याचिका पर जवाब मांगा गया था।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता संगठन की ओर से पेश वकील निजाम पाशा ने कहा कि मध्य प्रदेश में कथित मॉब-लिंचिंग की घटना हुई थी, लेकिन पीड़ितों के खिलाफ गोहत्या के संबंध में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। उन्होंने कहा कि अगर राज्य को मॉब लिंचिंग की घटना से इनकार करना है, तो तहसीन पूनावाला मामले में 2018 के फैसले का पालन कैसे किया जा सकता है।

गौरतलब है, पूनावाला मामले में, शीर्ष अदालत ने राज्यों को गोरक्षा और भीड़ द्वारा हत्या की घटनाओं की जांच करने के लिए कई निर्देश जारी किए हैं। 

मध्य प्रदेश सरकार को फटकार
पीठ ने मध्य प्रदेश सरकार की ओर से पेश वकील से सवाल किया कि बिना यह जांच किए बिना कि वो गौमांस था या नहीं, गोहत्या के लिए प्राथमिकी कैसे दर्ज की गई और इसमें शामिल लोगों के खिलाफ प्राथमिकी क्यों दर्ज नहीं की गई। पीठ ने आगे कहा कि क्या आप किसी को बचाने की कोशिश कर रहे हैं? आप बिना जांच के गोहत्या के लिए प्राथमिकी कैसे दर्ज कर सकते हैं। 

पाशा ने कहा कि ऐसी घटना हरियाणा में भी घटी। यहां गोमांस ले जाने का मामला दर्ज किया गया, न कि मॉब लिंचिंग का। उन्होंने कहा, ‘राज्य इस बात से इनकार कर रहे हैं कि मॉब लिंचिंग की कोई घटना हुई और पीड़ितों के खिलाफ गोहत्या के लिए प्राथमिकी दर्ज की जा रही है। केवल दो राज्यों मध्य प्रदेश और हरियाणा ने रिट याचिका और घटनाओं पर अपना हलफनामा दायर किया है, लेकिन अन्य राज्यों ने कोई हलफनामा दायर नहीं किया है।’

अन्य धर्म के लोगों की मॉब लिंचिंग का कोई उल्लेख नहीं
न्यायमूर्ति कुमार ने पाशा से कहा कि याचिकाओं में सभी घटनाओं का उल्लेख किया जाना चाहिए। एक राज्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अर्चना पाठक दवे ने कहा कि रिट याचिका में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि मुस्लिम पुरुषों के साथ मॉब लिंचिंग की घटना होती है। अन्य धर्म के लोगों की मॉब लिंचिंग का कोई उल्लेख नहीं है। पाशा ने कहा कि यह समाज की वास्तविकता है और विशेष समुदायों के खिलाफ घटनाओं को अदालत के समक्ष लाया जा सकता है।

अपनी दलीलों में संयम बरतें
पीठ ने दवे से कहा कि वह अपनी दलीलों में संयम बरतें और कहा कि धर्म के आधार पर घटनाओं में नहीं जाएं। हमें बड़े कारण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद के लिए स्थगित कर दी और आदेश दिया कि राज्यों को भीड़ द्वारा हत्या की रोकथाम के लिए उठाए गए कदमों पर अपना जवाब दाखिल करना चाहिए।

ताजा खबर - (Latest News)

Related news

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here