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Sunday, April 28, 2024

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Bombay High Court: ‘हिंसक’ बाप को बेटी की कस्टडी नहीं, नहीं होना चाहिए दंपती की लड़ाई का असर; कोर्ट की टिप्पणी

बच्चे की देखभाल के मामले में बंबई उच्च न्यायालय ने बड़ा फैसला सुनाया है। बुधवार को हाईकोर्ट ने कहा कि एक नाबालिग लड़की की कस्टडी उसके ऐसे पिता को नहीं सौंपी जा सकती, जो हिंसक है। अदालत ने कहा, बच्ची की कस्टडी ऐसे बाप को सौंपना सुरक्षित नहीं होगा, जिस पर क्रोध करने के साथ-साथ हिंसक और अपमानजनक आचरण प्रदर्शित करने के आरोप लगे हैं।

न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की खंडपीठ ने 41 वर्षीय ब्रिटिश नागरिक की याचिका पर यह फैसला सुनाया। पिता ने अदालत से अपनी तीन साल की बेटी की देखभाल के लिए उसकी कस्टडी मांगी थी। याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा, उस व्यक्ति (याचिकाकर्ता) को गुस्सा आता था और उसने अतीत में उसका (महिला) शारीरिक शोषण किया था। बॉम्बे हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में ब्रिटिश नागरिक ने दावा किया था कि बच्ची को अलग हुई पत्नी अवैध रूप से भारत लाई है।

बच्ची की कस्टडी की अपील ठुकराते हुए अदालत ने कहा, यह कानून का स्थापित सिद्धांत है कि अदालत को फैसला सुनाते हुए बच्चे का हित सबसे पहले देखना चाहिए। अदालत ने साफ किया कि बच्चे के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखते हुए ही अभिभावक को कस्टडी सौंपने जैसे संवेदनशील मुद्दे पर फैसला करना चाहिए।

हाईकोर्ट ने कहा, बच्चे को विदेशी क्षेत्राधिकार (foreign jurisdiction) में वापस भेजने के निर्देश के परिणामस्वरूप उसे कोई शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक या अन्य नुकसान नहीं होना चाहिए। पीठ ने कहा, ‘याचिकाकर्ता के गुस्से के पिछले आचरण को ध्यान में रखते हुए बच्चे की कस्टडी उसे सौंपना सुरक्षित नहीं होगा।’ अदालत ने स्वीकार किया कि ऐसे पिता को कस्टडी सौंपने पर बच्ची के स्वस्थ और सुरक्षित पालन-पोषण पर प्रतिकूल असर हो सकता है।

पीठ ने कहा, ‘बच्ची की आयु केवल साढ़े तीन साल है। उसे अपनी मां की देखभाल और स्नेह की जरूरत है।’ अदालत ने कहा, भले ही एक बच्चे को माता-पिता दोनों का साथ पाने का अधिकार है, लेकिन मां-बाप के बीच लड़ाई के कारण बच्चे का नुकसान नहीं होना चाहिए।

गौरतलब है कि बच्ची की मां अलग हो चुके अपने पति को बच्ची से वर्चुअल बात करने से नहीं रोकती। पिता और बच्ची के बीच वीडियो कॉल होती है, इस पर मां को आपत्ति नहीं है। उच्च न्यायालय ने कहा, मुकदमे के तमाम पहलुओं को देखते हुए बच्ची का फिलहाल, भारत में अपनी मां के साथ रहना ही सर्वोत्तम हित में है। यह मानने का कोई आधार नहीं है कि बच्ची अवैध रूप से भारत लाई गई है।

याचिका के अनुसार, इस दंपती की शादी करीब पांच साल पहले हुई। 2018 में अमेरिका में शादी के बाद लड़की का जन्म 2020 में हुआ। बच्ची के जन्म के तुरंत बाद दोनों के बीच झगड़ा हुआ। दंपती के बीच वैवाहिक विवादों इतना बढ़ गया कि छह महीने तक दोनों अलग रहे। 2022 में दोनों ने एक सुलह समझौते पर हस्ताक्षर किया और सिंगापुर चले गए। नवंबर 2022 में महिला बच्ची के साथ भारत लौट आई और दोबारा सिंगापुर लौटने से इनकार कर दिया। पति ने सिंगापुर की अदालत में याचिका दायर की। विदेशी अदालत ने बच्ची की संयुक्त कस्टडी का आदेश दिया था।

कानूनी संघर्ष में रोचक मोड़ उस समय आया जब इसी साल फरवरी में बच्ची के पिता ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उसने सिंगापुर कोर्ट के आदेश के आधार पर बच्ची की कस्टडी मांगी। हालांकि, सुनवाई के दौरान महिला ने याचिका का विरोध किया। उसने कहा कि उसे अपनी और बेटी की सुरक्षा चिंताओं के कारण भारत लौटने पर मजबूर होना पड़ा। महिला ने पिता पर दुर्व्यवहार के गंभीर आरोप भी लगाए। उसने कहा, पति घरेलू हिंसा का आरोपी है। इसके खिलाफ अमेरिका और सिंगापुर में पुलिस के पास शिकायत भी दर्ज कराई जा चुकी है।

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