सर्वोच्च न्यायालय ने अदाणी-हिंडनबर्ग (Adani-Hindenburg) मामले में अपना फैसला आज सुरक्षित रख लिया। साथ ही शीर्ष अदालत ने संकेत दिया कि वह बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) को कुछ अतिरिक्त निर्देश जारी कर सकता है। बाजार नियामक ने भी अदालत से कहा कि उसे मामले की जांच पूरी करने के लिए समय-सीमा में विस्तार की जरूरत नहीं होगी।
केंद्र सरकार और सेबी की ओर से अदालत में मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘हम समय में विस्तार की मांग नहीं कर रहे हैं। हमारे पास 24 मामले हैं। सेबी इन 24 मामलों में से 22 की जांच पहले ही पूरी कर चुका है। शेष 2 मामलों के लिए हमें विदेशी नियामकों से जानकारी की दरकार है।’
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने मेहता से पूछा कि निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए वे क्या कर रहे थे। सेबी से पूछा गया, ‘शेयर बाजार में जबरदस्त उतार-चढ़ाव है। निवेशकों को इस प्रकार के उतार-चढ़ाव से बचाने के लिए सेबी क्या करने की योजना बना रहा है?’
इस पर मेहता ने कहा कि ऐसे मामले पाए जाने पर शॉर्ट सेलर्स के खिलाफ कार्रवाई की गई है। उन्होंने कहा, ‘जहां कहीं भी हमें शॉर्ट सेलिंग के मामले दिख रहे हैं, हम उनके खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं।’
सॉलिसिटर जनरल ने यह भी कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। उन्होंने कहा, ‘नियामकीय ढांचे को मजबूत करने के लिए विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों पर कोई आपत्ति नहीं है। उनकी सिफारिशें विचाराधीन हैं और हमने सैद्धांतिक रूप से सिफारिश को स्वीकार किया है।’
विशेष समिति ने मई में अपनी अंतरिम रिपोर्ट में कहा था कि अदाणी समूह की कंपनियों में हेराफेरी का कोई स्पष्ट पैटर्न नहीं दिखा है और कोई नियामकीय विफलता नहीं हुई है।
हालांकि समिति ने सेबी द्वारा 2014 से 2019 के बीच किए गए कई संशोधनों का उल्लेख करते हुए कहा था कि उससे नियामक की जांच करने की क्षमता प्रभावित हुई है। समिति ने कहा कि विदेशी संस्थाओं से धन प्रवाह के कथित उल्लंघन की उसकी जांच में कुछ नहीं निकला। उसके बाद मेहता ने विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को मुख्य न्यायाधीश, न्यायाधीश जेबी पारदीवाला और न्यायाधीश मनोज मिश्रा के पीठ के सामने रखा जिस पर सेबी ने सैद्धांतिक रूप से अपनी सहमति जताई है।
इस बीच, एक याचिकाकर्ता की ओर से मौजूद वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने शीर्ष अदालत से कहा कि इस मामले में सेबी का आचरण भरोसेमंद नहीं दिखा।
उन्होंने कहा, ‘हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि सेबी की जांच भरोसेमंद नहीं है। उनका कहना है कि 13 से 14 प्रविष्टियां अदाणी से जुड़ी हैं लेकिन वे उन पर गौर नहीं कर सकते क्योंकि एफपीआई दिशानिर्देशों में संशोधन कर दिया गया है।’
इस पर शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले में मीडिया क्या कहना चाहता है, उस हिसाब से प्रतिभूति बाजार नियामक को चलने के लिए नहीं कहा जा सकता है। भूषण ने कहा, ‘अगर पत्रकारों को ये दस्तावेज मिल रहे हैं तो सेबी उसे कैसे हासिल नहीं कर सकता है। इससे पता चलता है कि विनोद अदाणी इन फंडों को नियंत्रित करते थे। उन्हें इतने साल तक ये दस्तावेज कैसे नहीं मिले।’
अदालत ने कहा कि सेबी केवल समाचार पत्रों में छपी खबरों के आधार पर कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकता है। भूषण ने विशेषज्ञ समिति में दो सदस्यों को शामिल किए जाने पर भी चिंता जताई जिनमें सोमशेखर सुंदरेशन (अब बंबई उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त) और ओपी भट्ट शामिल हैं।
सुंदरेशन अपनी वकालत के दौरान अदाणी की ओर से सेबी के समक्ष उपस्थित हुए थे जबकि भट्ट अदाणी समूह के साथ साझेदारी वाली एक कंपनी के चेयरमैन हैं। हालांकि अदालत ने कहा कि ये सभी आरोप निराधार हैं।