31 C
Mumbai
Thursday, May 2, 2024

आपका भरोसा ही, हमारी विश्वसनीयता !

SC ने कहा- सजा से छूट में राज्य सरकार को चयनात्मक नहीं होना चाहिए, हर कैदी को सुधार का मौका मिले

सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो मामले में सुनवाई के दौरान गुरुवार को गुजरात सरकार से कहा कि राज्य सरकारों को दोषियों को छूट देने में चयनात्मक नहीं होना चाहिए और प्रत्येक कैदी को सुधार और समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर दिया जाना चाहिए। गौरतलब है कि गुजरात सरकार ने 2002 के दंगों के दौरान बिलकिस बानो सामूहिक दुष्कर्म मामले में सभी 11 दोषियों की समयपूर्व रिहाई के अपने फैसले का बचाव किया था।

शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी गुजरात सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू की उस दलील के जवाब में आई है जिसमें उन्होंने कहा था कि कानून कहता है कि दुर्दांत अपराधियों को भी खुद को सुधारने का मौका दिया जाना चाहिए। 

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि 11 दोषियों द्वारा किया गया अपराध “जघन्य” था, लेकिन दुर्लभतम की श्रेणी में नहीं आता है। इसलिए, वे सुधार के अवसर के पात्र हैं। हो सकता है कि व्यक्ति ने अपराध किया हो…किसी विशेष क्षण में कुछ गलत हो गया हो। बाद में उसे हमेशा परिणामों का एहसास हो सकता है। यह काफी हद तक जेल में उनके आचरण से निर्धारित किया जा सकता है, जब पैरोल या फर्लो पर रिहा किया जाता है। ये सब दिखाता है कि उन्हें एहसास हो गया है कि उन्होंने जो किया वह गलत है। कानून यह नहीं है कि हर किसी को हमेशा के लिए दंडित किया जाना चाहिए। सुधार के लिए मौका दिया जाना चाहिए।

दलील पर प्रतिक्रिया देते हुए न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने जानना चाहा कि जेल में अन्य कैदियों पर यह कानून कितना लागू किया जा रहा है। पीठ ने कहा, हमारी जेलें खचाखच भरी हुई क्यों हैं? छूट की नीति को चुनिंदा तरीके से क्यों लागू किया जा रहा है?

पीठ ने राजू से पूछा, केवल कुछ कैदियों को ही नहीं, बल्कि प्रत्येक कैदी को सुधार और पुनः संगठित होने का अवसर दिया जाना चाहिए। लेकिन जहां दोषियों ने 14 साल की सजा पूरी कर ली है, वहां छूट नीति कहां तक लागू की जा रही है? क्या इसे सभी मामलों में लागू किया जा रहा है? एएसजी ने उत्तर दिया कि सभी राज्यों को इस प्रश्न का उत्तर देना होगा और छूट नीति अलग-अलग राज्यों में अलग होती है।

राज्यों की छूट नीति पर टिप्पणी करते हुए पीठ ने कहा कि सवाल यह है कि क्या समय से पहले रिहाई की नीति उन सभी लोगों के संबंध में सभी मामलों में समान रूप से लागू की जा रही है जिन्होंने 14 साल पूरे कर लिए हैं और इसके लिए पात्र हैं। पीठ ने कहा, दूसरी ओर हमारे पास रुदुल शाह जैसे मामले हैं। भले ही उन्हें बरी कर दिया गया था, लेकिन वह जेल में ही रहे। अत्यधिक मामले, इस तरफ और उस तरफ दोनों हैं।

रुदुल शाह को 1953 में अपनी पत्नी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और 3 जून, 1968 को एक सत्र अदालत द्वारा बरी किए जाने के बावजूद, वह कई वर्षों तक जेल में रहे। अंततः उन्हें 1982 में रिहा कर दिया गया। 11 दोषियों की सजा माफ करने को लेकर सीबीआई ने राय दी थी इससे चलता है कि इसमें दिमाग का कोई इस्तेमाल नहीं किया गया। इस पर एएसजी ने दलील देते हुए कहा कि वे सिर्फ तथ्य बताते हैं। अपराध को जघन्य बताने के अलावा कुछ भी उल्लेख नहीं किया गया है। मुंबई में बैठे अधिकारी को जमीनी हकीकत का ज्ञान नहीं है। इस मामले में स्थानीय पुलिस अधीक्षक की राय सीबीआई अधिकारी से ज्यादा उपयोगी है।

सीबीआई ने कहा था कि किया गया अपराध “जघन्य, संगीन और गंभीर” था, इसलिए दोषियों को समय से पहले रिहा नहीं किया जा सकता और उनके साथ कोई नरमी नहीं बरती जा सकती। मामले में सुनवाई 24 अगस्त को फिर शुरू होगी। बता दें कि बिलकिस बानो 21 साल की थीं और पांच महीने की गर्भवती थीं, जब गोधरा ट्रेन जलाने की घटना के बाद भड़के सांप्रदायिक दंगों के डर से भागते समय उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। उनकी तीन साल की बेटी दंगों में मारे गए परिवार के सात सदस्यों में से एक थी।

ताजा खबर - (Latest News)

Related news

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here