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Wednesday, May 1, 2024

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UCC पर माहौल बनाने के बाद भाजपा की आवाज कमजोर क्यों हो रही, भारी पड़ रही इन वोटरों को खोने की चिंता

पिछले कुछ समय से भाजपा समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लेकर लगातार आक्रामक रुख दिखा रही थी। प्रधानमंत्री मोदी ने मध्यप्रदेश में अपनी एक जनसभा के दौरान कहा था कि एक घर में रहने वाले अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग कानून नहीं हो सकते। इससे यहां तक अनुमान लगाया जाने लगा था कि भाजपा मानसून सत्र में ही समान नागरिक संहिता बिल लाने पर विचार कर सकती है। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से भाजपा इस मुद्दे पर ठंडा रुख अपनाती हुई दिखाई पड़ रही है। इसका कारण क्या हो सकता है?

समान नागरिक संहिता पर सबसे ज्यादा मुखर विरोध मुसलमानों की ओर से आ रहा था। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा ए हिंद ने खुलकर इसका विरोध करने का निर्णय लिया है और वे अलग-अलग दलों से मिलकर इसके विरोध में समर्थन जुटाने की कोशिश भी कर रहे हैं। बुधवार को भी पर्सनल लॉ बोर्ड के कुछ लोगों ने कर्नाटक सरकार से मुलाकात की और इसके विरोध की अपील की। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बयान दिया है कि भाजपा केवल 2024 लोकसभा चुनाव में राजनीतिक लाभ के लिए यूसीसी मुद्दे को उछाल रही है। आरोप लगाए जा रहे हैं कि भाजपा राजनीतिक लाभ और मतदाताओं के सांप्रदायिक विभाजन के लिए इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से उछाल रही है।   

लेकिन भाजपा के लिए उस समय परेशानी बढ़ गई जब आदिवासी समुदाय के लोगों और सिख समुदाय के लोगों द्वारा समान नागरिक संहिता का विरोध किया जाने लगा। आदिवासी समुदाय को भय है कि यूसीसी आने से उनकी परंपराओं में अनावश्यक हस्तक्षेप बढ़ सकता है, तो सिख समुदाय के लोगों का कहना है कि यह उनके विवाह पद्धति में अनावश्यक हस्तक्षेप है।   

दरअसल, विपक्ष द्वारा बनाए गए गठबंधन इंडिया के कारण भाजपा पर भी दबाव बढ़ गया है। वह नए-नए सहयोगियों के साथ लाकर अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है। ऐसे समय में वह अपने किसी मतदाता वर्ग को निराश करने का जोखिम नहीं उठा सकती। आदिवासी मतदाताओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए भाजपा उन्हें अपने से अलग नहीं होने देगी।

इसी तरह अकाली दल भाजपा की लंबे सयम तक महत्त्वपूर्ण सहयोगी रही है। अपने गठबंधन को ज्यादा मजबूत दिखाने और पंजाब में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए भाजपा अकाली दल को भी फिर से साधने की कोशिश कर रही है। लेकिन इसी बीच आए यूसीसी की चर्चा ने सिखों की पार्टी के रूप में पहचान बना चुकी अकाली दल को असहज कर दिया है। माना जा रहा है कि यही कारण है कि आदिवासी और अकाली दल को नाराज न करने की सोच में भाजपा ने यूसीसी को लेकर अपना रुख नरम कर लिया है।

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