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Thursday, April 25, 2024

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अब डॉलर का दुनियाँ में एकछत्र राज करने के दिन लदते जा रहे हैं : आईएमफए की रिपोर्ट

आईएमफए की रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले साल विदेशी मुद्रा भंडारों में अमेरिकी डॉलर का हिस्सा 25 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया।

दुनिया के बहुत से देश, विदेशी मुद्रा भंडार और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से डालर को निकाल रहे हैं। बहुत से देशों का मानना है कि अपनी करेंसी अर्थात डाॅलर का इस्तेमाल करके अमरीका, दूसरे देशों को लगातार परेशान कर रहा है।  अब यह मुद्दा केवल बयानबाज़ी तक सीमित नहीं रहा बल्कि इस पर अमल होना भी शुरू हो चुका है। यह प्रक्रिया अब तेज़ होती जा रही है।   प्रक्रिया ने रफ़तार पकड़ ली है।

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अबतक डॉलर को दुनिया भर में कारोबार की मुख्य मुद्रा के रूप में देखा जाता है।  यही कारण है कि विभिन्न सरकारें अपने विदेशी मुद्रा भंडार में इसकी अधिक से अधिक मात्रा रखने की कोशिश करती हैं लेकिन अब एसा नहीं रहा है।

सन 2020 में विदेशी मुद्रा भंडारों में डॉलर का हिस्सा गिरकर 59 प्रतिशत रह गया।  इस गिरावट के कारण कुछ मुद्राओं की कीमतों में उतार-चढ़ाव तो आया है, लेकिन एक बड़ा कारण विदेशी व्यापार में दूसरी मुद्राओं विशेषकर चीन के युआन की बढ़ रही भूमिका भी शामिल है।

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पिछले साल विदेशी मुद्रा भंडारों में यूरोपियन यूनियन की मुद्रा-यूरो का हिस्सा सात फीसदी बढ़ा है।  अब यह रक़म 2.52 ट्रिलियल डॉलर के बराबर तक पहुंच गई। पिछले साल की चौथी तिमाही में विदेशी मुद्रा भंडारों में जमा यूरो में 21.2 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।  यह बढ़ोत्तरी, 2014 के बाद की सबसे बड़ी बढ़ोतरी है। इसके पहले आर्थिक मंदी के समय 2009 में विदेशी मुद्रा भंडारों में यूरो का हिस्सा बढ़कर 28 फीसदी हो गया था।

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इन सब बातों के बावजूद सबसे ज्यादा ध्यान चीनी युआन ने अपनी ओर खींचा है। पिछले साल सभी चार तिमाहियों में विदेशी मुद्रा भंडारों में युआन की मात्रा बढ़ती रही। साल भर में कुल मिला कर इसमें 2.25 फीसदी बढ़ोतरी हुई। अब दुनिया के विदेशी मुद्रा भंडारों में इसका हिस्सा नौ फीसदी हो गया है। गौरतलब है कि विदेशी मुद्रा के क्षेत्र में युवान नया खिलाड़ी है जो बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रहा है।  पिछले तीन वर्षों में चीन की सरकार ने विभिन्न देशों के साथ कारोबार आपसी मुद्रा में करने के समझौते किए हैं। चीन की योजना यह है कि विदेश व्यापार में डॉलर के वर्चस्व को चुनौती दी जाए। 2020 में ही इस बात के संकेत मिले थे कि चीन अपनी मंशा पूरी करने में  सफल हो रहा है भले ही धीमी रफ्तार से।

जानकारों का यह कहना है कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार अब बहुमुद्रा ढांचे की ओर बढ़ रहा है जिससे डाॅलर की कमर टूट रही है।  विदेशी मुद्रा भण्डारों में डालर की कमी को इसी दृष्टि से देखा जा रहा है।

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