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Wednesday, May 1, 2024

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सुप्रीम कोर्ट मोइत्रा की याचिका पर मई में सुनवाई करेगा, लोकसभा से अपने निष्कासन को दी है चुनौती

सुप्रीम कोर्ट: सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि वह तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) नेता महुआ मोइत्रा की याचिका पर मई में सुनवाई करेगा। मोइत्रा ने लोकसभा से अपने निष्कासन को चुनौती दी है। उनकी याचिका न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई। 

मोइत्रा के वकील ने कहा कि उनका इस मामले में लोकसभा महासचिव की ओर से दाखिल जवाब पर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का इरादा नहीं है। पीठ ने कहा, छह मई से शुरू होने वाले सप्ताह में एक गैर -विधिक दिन सूचीबद्ध करें। याचिकाकर्ता (महुआ मोइत्रा) के वकील ने कहा है कि उनका जवाबी हलफनामा दाखिल करने का इरादा नहीं है। 

शीर्ष अदालत ने लोकसभा महासचिव से मांगा था जवाब
उच्चतम न्यायालय ने तीन जनवरी को मोइत्रा की याचिका पर लोकसभा महासचिव से जवाब मांगा था। मोइत्रा ने याचिका में कहा था कि उन्हें लोकसभा की कार्यवाही में भाग लेने की अनुमति दी जाए। पीठ ने यह कहते हुए आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था कि इसकी अनुमति टीएमसी नेता को राहत देने के समान होगी। शीर्ष अदालत ने लोकसभा अध्यक्ष और सदन की आचार समिति को भी नोटिस जारी करने से इनकार किया था। मोइत्रा ने अपनी याचिका में दोनों को प्रतिवादी बनाया है। 

लोकसभा में पारित हुआ था निष्कासन का प्रस्ताव
आचार समिति की रिपोर्ट पर पिछले साल आठ दिसंबर को लोकसभा में तीखी बहस हुई थी। इस दौरान मोइत्रा को बोलने का मौका नहीं दिया गया था। संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने अनैतिक आचरण के लिए टीएमसी सांसद को सदन से निष्कासित करने का प्रस्ताव पेश किया था। प्रस्ताव को ध्वनिमत से पारित कर लिया गया था। जोशी ने कहा था कि आचार समिति ने मोइत्रा को अनैतिक आचरण और सदन की अवमानना का दोषी पाया। उन्होंने लोकसभा सदस्यों की यूजर आईडी और पासवर्ड को ऐसे लोगों के साथ साझा किया था जो इसके लिए अधिकृत नहीं थे। जिसका राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर पड़ा। 

आचार समिति ने की थी जांच की सिफारिश
समिति ने यह भी सुझाव दिया था कि मोइत्रा के आपत्तिजनक, अनैतिक, जघन्य और आपराधिक आचरण को देखते हुए सरकार को एक तय समयसीमा के भीतर कानूनी और संस्थागत जांच शुरू जानी चाहिए।प्रह्लाद जोशी द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव में कहा गया था कि एक कारोबारी के हितों को आगे बढ़ाने के लिए उपहार स्वीकार करने और अवैध रिश्वत लेने के लिए एक सांसद के रूप में मोइत्रा का आचरण अशोभनीय पाया गया, जो किए एक गंभीर अपराध और अत्यधिक निंदनीय आचरण है। इससे पहले आचार समिति के अध्यक्ष विनोद कुमार सोनकर ने मोइत्रा के खिलाफ भाजपा सांसद निशिकांत दुबे द्वारा दायर शिकायत समिति की रिपोर्ट पेश की थी।

शीर्ष अदालत ने याचिका पर सुनवाई से किया इनकार
सर्वोच्च न्यायालय ने आज उस जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार किया, जिसमें जेल अधिकारियों को कैदियों को एकांत कारावास में रखने का अधिकार देने वाले दंडात्मक कानून के प्रावधानों को रद्द करने के लिए संसद को निर्देश देने की मांग की गई थी। मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने हैरानी जताते हुए कहा, हम किसी प्रावधान को रद्द करने के लिए संसद को निर्देश कैसे दे सकते हैं? पीठ ने कहा, याचिका कैदियों के साथ भेदभाव और मौलिक अधिकारियों के उल्लंघन पर सवाल उठा सकती है। लेकिन कानून निर्माताओं को कानून निरस्त करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता। 

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