IVF Process: सर्वोच्च न्यायालय ने अलग रह रहे एक दंपति के बीच तलाक की कार्यवाही पर रोक लगा दी है। दरअसल, पत्नी ने इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) प्रक्रिया के जरिए गर्भधारण करने के लिए अपने पति का सहयोग मांगा है। आईवीएफ को आम बोलचाल की भाषा में टेस्ट ट्यूब बेबी भी कहते हैं। महिला ने मामले को भोपाल से लखनऊ स्थानांतरित करने के लिए शीर्ष अदालत का रुख किया है, जहां वह अपने माता-पिता के साथ रहती हैं। स्थानांतरण याचिका न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई, जिन्होंने इस पर अपनी सहमति दी।
दोनों पक्षों के बीच तलाक की याचिका भोपाल की परिवार न्यायालय में लंबित है। याचिकाकर्ता महिला (पत्नी) लखनऊ में रह रही हैं और चाहती है कि इस मामले को लखनऊ स्थानांतरित कर दिया जाए। पीठ ने एक दिसंबर को पारित अपने आदेश में कहा कि पति को नोटिस जारी किया जाए और उनसे छह सप्ताह के भीतर जवाब मांगा जाए। इस बीच मध्य प्रदेश के भोपाल में परिवार अदालत के मुख्य न्यायाधीश की अदालत के समक्ष लंबित (तलाक के) मामले में आगे की कार्यवाही पर रोक रहेगी।
आईवीएफ उपचार चल रहा था, पति ने दायर की तलाक याचिका
महिला की ओर से वकील असद अल्वी शीर्ष अदालत में पेश हुए। अपनी याचिका में महिला (44 वर्षीय) ने कहा कि दंपति ने नवंबर 2017 में शादी की थी और बार-बार अनुरोध करने के बावजूद उसके पति ने अपनी बेरोजगारी को माता-पिता बनने में देरी के बहाने के रूप में इस्तेमाल किया। महिला ने कहा कि लगातार अनुरोध के बाद इस साल मार्च में उसका पति आईवीएफ के जरिए बच्चा पैदा करने के लिए सहमत हुआ। जिसके लिए उन्होंने विभिन्न चिकित्सा परीक्षण किए और एक डॉक्टर की देखरेख में आवश्यक दवा लेना शुरू कर दिया। लेकिन याचिकाकर्ता (पत्नी) को तब झटका लगा और निराशा हुई, जब उसका आईवीएफ उपचार चल रहा था, तभी प्रतिवादी (पति) ने अचानक तलाक के लिए याचिका दायर कर दी। वकील एश्वर्या पाठक के जरिए दायर यायिका में आगे कहा गया कि इसके बाद पति ने याचिकाकर्ता के साथ सभी संपर्क तोड़ दिए। उसकी कॉल को ब्लॉक कर दिया और उसे भावनात्मक रूप से परेशान किया।
प्रक्रिया के लिए पति से सहयोग की मांग की
तलाक के लंबित मामले को लखनऊ स्थानांतरित करने की मांग करते हुए याचिका में कहा गया है कि महिला को उसके ससुराल से निकाल दिया गया था और उसे भोपाल में अपनी जान बचाने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। वह उत्तर प्रदेश की राजधानी में अपने माता-पिता के साथ रह रही हैं। याचिका के साथ महिला (पत्नी) ने एक आवेदन भी दायर किया है जिसमें उसके पति को आईवीएफ प्रक्रिया में याचिकाकर्ता और डॉक्टरों के साथ सहयोग करने और आईवीएफ डॉक्टरों द्वारा आवश्यकता या सलाह दिए जाने पर शुक्राणु और अन्य सहयोग प्रदान करने का निर्देश देने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि व्यक्ति ने शादी के बाद अपनी बेरोजगारी का खुलासा किया। महिला से अस्थायी रूप से अपने माता-पिता के साथ रहने का अनुरोध किया। महिला ने याचिका में कहा कि पति ने उसे आश्वासन दिया था कि जब वह स्थिर रोजगार हासिल कर लेगा तो उनका एक बच्चा होगा। बाद में उसे नौकरी मिल गई।’
बच्चा पैदा करने के लिए राजी हुआ पति
याचिका में कहा गया, बहुत समझाने के बाद प्रतिवादी (पति) बच्चा पैदा करने के लिए राजी हो गया। याचिकाकर्ता (पत्नी) की उम्र करीब 44 वर्ष है और वह रजोनिवृत्ति (मासिक धर्म बंद हो जाना) के कगार पर है। डॉक्टर ने उन्हें 45-46 वर्ष की आयु पूरी करने से पहले आईवीएफ प्रक्रिया से बच्चा पैदा करने की सलाह दी है। दोनों सहमत हो गए हैं और आवीएफ प्रक्रिया से गुजरने के लिए उपचार शुरू कर दिया गया है।