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Wednesday, May 1, 2024

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14 दिन बाद भी काम करता रोवर अगर रेडियो एक्टिव लगाकर ऊर्जा तैयार होती तो, नहीं हुआ इस वजह से इस्तेमाल

चंद्रमा की सतह पर लैंड करने के तकरीबन आठ से नौ घंटे बाद रोवर लैंडर से बाहर निकल कर अपना काम करने लगा है। अब यह रोवर अगले 13 दिनों तक लगातार चंद्रमा की सतह पर आगे बढ़ते हुए वहां की जानकारियां साझा करेगा। यह प्रक्रिया एक चंद्र दिवस यानी कि सिर्फ 14 दिन के लिए ही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर रोवर में रेडियोएक्टिव के माध्यम से ऊर्जा का संचालन किया जाता तो यह 14 दिन से ज्यादा चंद्रमा की धरती पर ऊर्जा लेकर कम कर सकता था। लेकिन चंद्रमा पर जो भी जानकारियां वैज्ञानिकों को चाहिए थी वह महज 14 दिन में ही पर्याप्त रूप से मिल जाएगी। दरअसल कुछ देशों की स्पेस एजेंसियों ने रेडियोएक्टिव लगाकर ऐसे ग्रहों पर शोध करना शुरु किया है जहां सूरज की रोशनी नहीं होती है। 

अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉ संजीव सहजपाल कहते हैं कि रोवर के बाहर आने के साथ ही अब चंद्रमा की सतह से संबंधित जानकारियां आने लग जाएगी। इस दौरान 14 दिनों के भीतर रोवर और लैंडर वैज्ञानिकों को चंद्रमा के इनपुट्स भेजता रहेगा। संजीव सहजपाल कहते हैं कि 14 दिन के बाद इतने ही दिनों की चंद्रमा पर रात होगी। इसलिए इस मिशन का जीवन चक्र इतने दिन का ही है। वह कहते हैं कि जहां पर सूरज की रोशनी नहीं होती है वहां पर वैज्ञानिक उपकरणों में रेडियोएक्टिव पदार्थ के माध्यम से ऊर्जा नियमित की जाती है। ताकि भेजे गए उपकरण कम्युनिकेशन बरकरार रख सकें। जुपिटर और सैटर्न पर कुछ स्पेस एजेंसियों ने रेडियोएक्टिव पदार्थ के माध्यम से ऊर्जा का संचालन करने की कोशिश की है। दरअसल यहां पर सूरज पहुंचता ही नहीं है। उनका कहना है कि रेडियोएक्टिव के माध्यम से लैंडर और रोवर की ऊर्जा को नियमित किया जा सकता था लेकिन इसकी यहां पर बिल्कुल आवश्यकता नहीं थी। क्योंकि जो जानकारियां 14 दिनों के भीतर लैंडर और रोवर के माध्यम से हमें मिलने वाली है वह पर्याप्त है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि चंद्रमा पर 14 दिन के लिए होने वाले एक चंद्रदिवस यानी कि सूर्य की पहुंचने वाली ऊर्जा वाले समय में रोवर और लैंडर दक्षिणी ध्रुव की समस्त जानकारियां और भविष्य में किए जाने वाले शोध के तथ्यों को वैज्ञानिकों से साझा करेगा। डॉक्टर सहजपाल कहते हैं कि 14 दिनों के भीतर रोवर चांद पर अपने तय रास्ते को न सिर्फ पूरा करेगा बल्कि उसकी पूरी सूचनाएं भी इसरो के डाटा सेंटर को भेजता रहेगा। संजीव सहजपाल का कहना है कि सिर्फ रोवर ही नहीं बल्कि लैंडर के माध्यम से भी सूचनाएं और पूरी तकनीकी जानकारियां मिलती रहेंगी। वह बताते हैं कि लैंडर और रोवर 14 दिनों तक पूरी सक्रियता के साथ हमें सूचनाएं भेजेगा।

उनका कहना है कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के लिए तैयार किए जाने वाले लैंडर और रोवर के पावर बैकअप की क्षमता 14 दिनों तक सबसे ज्यादा होती है। उसके बाद की सूचनाएं या तो मिलनी बंद हो जाएंगी या उनकी स्पीड न के बराबर हो जाएगी। दरअसल चंद्रमा पर 14 दिन का एक दिन और 14 दिन की एक रात के बाद इसरो के भेजे गए उपकरणों में कितनी ऊर्जा बचेगी इसका आकलन किया जाएगा। डॉक्टर संजीव सहजपाल कहते हैं कि वैसे वैज्ञानिकों की ओर से लैंडर और रोवर से संपर्क करने के प्रयास तो निश्चित किए जाएंगे लेकिन इसकी संभावना के बराबर लग रही है कि उनसे संपर्क बन सकेगा । उनका कहना है कि दरअसल चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर तापमान रात के वक्त माइनस दो सौ डिग्री के करीब हो जाता है। ऐसे में किसी भी उपकरण के बचने की संभावनाएं खासतौर से कम्युनिकेशन के लिहाज से नगण्य हो जाती हैं।

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