सरकार सोमवार से शुरू हुए संसद के पांच दिवसीय सत्र में मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति संबंधी विधेयक को पारित कराने के लिए जोर नहीं दे सकती है। सूत्रों ने सोमवार को यह बात कही।
उन्होंने कहा कि सरकार के भीतर एक विचार यह है कि विधेयक को कानून एवं न्याय संबंधी स्थायी समिति के पास भेजा जाए। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने 10 अगस्त को राज्यसभा में यह विधेयक पेश किया था।
एन गोपालस्वामी, वीएस संपत और एसवाई कुरैशी सहित कुछ पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने शनिवार को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर सीईसी और चुनाव आयुक्तों की तुलना कैबिनेट सचिव से करने के प्रावधान का विरोध किया था। अभी तक चुनाव आयोग के सदस्य उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के बराबर होते हैं।
पत्र में कहा गया है कि यह प्रतीकात्मक है कि चुनाव आयुक्तों को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के समान दर्जा प्राप्त है। यह दिखाता है कि न्यायपालिका स्वतंत्र है और चुनाव आयोग भी स्वतंत्र है। पत्र में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश का दर्जा संस्थान की स्वायत्तता को दिखाता है। पत्र के मुताबिक, यह दर्जा नहीं छीना जाना चाहिए क्योंकि चुनाव आयोग को चुनाव कराने हैं और राजनेताओं व नौकरशाहों से निपटना है।
संसद सत्र की पूर्व संध्या पर सरकार द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में विपक्षी नेताओं ने रविवार को विधेयक के खिलाफ बोला। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सरकार का मानना है कि मौजूदा सत्र में इस विधेयक को चर्चा और पारित कराने के लिए नहीं लिया जाना चाहिए।